स्वतंत्रता संग्राम में जैन: सेनानी वीर उदयचंद जैन
भारत वर्ष की आजादी के लिए 1857 ई० से प्रारम्भ हुए 1947 तक के 90 वर्ष के संघर्ष में न जाने कितने वीरों ने अपनी कुर्बानियां दीं, कितने देशभक्तों ने जेल की दारुण यातनायें भोगीं। इस बीच अनेक आन्दोलन, सत्याग्रह, अहिंसक संघर्ष हुए, किन्तु 1942 का 'करो या मरो' आन्दोलन निर्णायक सिद्ध हुआ । इसी आन्दोलन के अमर शहीद हैं वीर उदय चंद जैन ।
प्राचीन महाकौशल और आज के मध्य प्रदेश का प्राचीन और प्रसिद्ध नगर है मण्डला । नर्मदा मैया कल-कल निनाद करती हुई यहाँ से गुजरती हैं। यह वही मण्डला है, जहाँ शंकराचार्य ने मण्डन मिश्र को शास्त्रार्थ में पराजित किया था, पर आज लोग मण्डला को अमर शहीद वीर उदयचंद की शहादत के कारण जानते हैं।
मण्डला नगर के पास ही नर्मदा मैया के दूसरे तट पर बसा है महाराजपुर ग्राम । इसी ग्राम के निवासी थे वीर उदयचंद जैन, जिन्होंने मात्र 19 वर्ष की अल्पवय में सीने पर गोली खाकर देश की आजादी का मार्ग प्रशस्त किया था।
उदयचंद जैन का जन्म 10 नवम्बर 1922 को हुआ। आपके पिता का नाम सेठ त्रिलोकचंद एवं माता का नाम श्रीमती खिलौना बाई था। उदय चंद की प्रारम्भिक शिक्षा महाराजपुर में हुई। 1936-37 में आगे अध्ययन के लिए वे जगन्नाथ हाई स्कूल (वर्तमान नाम - जगन्नाथ शासकीय बहुद्देशीय आदर्श उच्चतर माध्यमिक शाला ) मण्डला में प्रविष्ट हुए ।
उदयचंद मेधावी छात्र तो थे ही, अपनी नेतृत्व क्षमता के कारण वे छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गये। तब वे हाई स्कूल के छात्र थे। उदय चंद बलिष्ठ और ऊंचे थे, हाकी उनका प्रिय खेल था । विज्ञान और गणित में उनकी अत्यधिक अभिरुचि थी। अपना काम स्वयं करने की प्रवृत्ति बचपन से ही थी। वे अत्यन्त मितव्ययी, ओजस्वी वक्ता और प्रायः मौन रहने वाले थे।
मण्डला नगर में आजादी की लड़ाई 1933 में ही उग्र रूप धारण कर चुकी थी, जब पूज्य बापू की चरण-रज इस नगर में पड़ी थी। 1939 में नेताजी सुभाष चंद बोस के आने से आंदोलन को और अधिक बल मिला।
1942 के आन्दोलन ने सारे देश को झकझोर दिया। 'करो या मरो' का नारा बुलन्द हुआ। मण्डला नगर भी पीछे नहीं रहा। यहाँ के शीर्षस्थ नेता पंडित गिरिजा शंकर अग्निहोत्री अन्य नेताओं के साथ जेल में बन्द किये जा चुके थे। ऐसी दशा में कार्यकर्ताओं को अपने विवेक से निर्णय लेना था। 14 अगस्त 1942 को श्री मन्नूलाल मोदी और श्री मथुरा प्रसाद यादव के आह्वान पर जगन्नाथ हाई स्कूल के छात्रों ने हड़ताल कर दी। उन्होंने कक्षाओं का बहिष्कार किया । उदय चंद मैट्रिक के छात्र थे। उदय चंद के चचेरे भाई कालूराम जी भी उनके साथ पढ़ते थे। शाम को कालूराम जी घर लौट गये पर उदय चंद घर वापिस नहीं गये, वे अपने साथियों से सलाह मशविरा करते रहे। उन्होंने श्री हनुमान प्रसाद अग्रवाल, श्री जीवन लाल घोष के निवास स्थानों पर सलाह की। पुलिस को सम्भवतः इन नौजवानों की गतिविधियों की भनक पड़ चुकी थी।
14 अगस्त 1942 की शाम की गतिविधियों के सन्दर्भ में उदयचंद के एक साथी - प्रो० चित्रभूषण श्रीवास्तव, शासकीय शिक्षा महाविद्यालय, जबलपुर (म0प्र0), ने अपने संस्मरण 'एक अन्तरंग प्रसङ्ग : अमर शहीद वीर उदय चंद के संग' में लिखा है- 14 अगस्त 1942 की शाम को मैं और उदय चंद नवजीवन क्लब से निकले। हम घूमने जा रहे थे। शाम के करीब 6 बजे होंगे। आकाश में बादल थे। पानी बरस कर निकल चुका था । हम लोग तहसील, कचहरी के पास पहुँचे ही थे कि वजनदार बूट पहने सिपाहियों के दल के मार्च की आवाज सुनाई दी। आगे देखा तो सशस्त्र सिपाहियों की एक टुकड़ी नीली वर्दी पहने, कंधों पर संगीन लगी बन्दूकें रखे, सड़क पर नगर की ओर बढ़ी चली आ रही थी। दल नायक बाजू से चलता हुआ आदेश देता जा रहा था - 'लेफ्ट राइट लेफ्ट..........।' हम दोनों सड़क से पटरी पर आ गये। दल उसी चुस्ती से आगे बढ़ गया। बरगद के पेड़ के पास चौराहे पर रुका और वहाँ बन्दूकें दागी गईं-- हवाई फायर हुए। गोली चलने की आवाजें सुनकर हम दोनों ने, जो टाऊन हाल के पास पहुंच रहे थे, मुड़कर देखा, किंचित् भयभीत से । तभी दल नायक ने कुछ आदेश दिया और पुलिस दल कमानियाँ गेट की ओर मुड़कर फिर रूट मार्च पर आगे बढ़ गया। यह सब शायद जनता को आतंकित करने के लिए किया गया प्रदर्शन था । "
वातावरण गम्भीर किन्तु शान्त था । उदय ने गम्भीर स्वर में आक्रोश से कहा- "ये गोली क्यों चला रहे हैं ? क्या इनकी गोलियों से आन्दोलन रुक जायेगा ? क्या पुलिस किसी को भी गोली मार सकती है? आखिर ये भी भारतीय हैं। इनके मन में भी देश के लिए तो प्रेम होना चाहिये ! "
मैंने कहा था “हाँ होना तो चाहिये पर सरकार के नौकर हैं न ? जो आदेश होगा वही तो करेंगे । आज्ञा पालन न करने पर सजा या नौकरी से निकाले जाने का डर भी तो होगा इन्हें । आज्ञा पालन भी तो इनका कर्तव्य है । "
भावावेश में उदय के उद्गार थे- 'भगतसिंह और चन्द्रशेखर कभी पुलिस से नहीं डरे । डरना कायरता है। निडर होकर हर एक को दमन का मुकाबला करना चाहिये, यह हमारा कर्तव्य है यदि हम सीना खोल कर खड़े हो जायें तो ?"
इस पर मुझे याद है - मैंने कहा था- " हो सकता है जनता को दबाने के लिए गोली चलाई जाये । क्या कह सकते हैं कि क्या होगा ? उन्हें जो सरकारी आदेश होगा वही करेंगे। " आदि ।
रात में भी उदयचंद घर नहीं गये अतः 15 अगस्त 1942 के प्रातः बाबूराम जी उदय चंद की तलाश में मण्डला आये। उन्हें पता चला कि नर्मदा गंज से जुलूस प्रारम्भ होने वाला है, वे वहां चले गये। वहीं पर उनकी भेंट उदय चंद से हुई। जुलूस का गन्तव्य जिलाधीश कार्यालय था। वहीं पर जुलूस सभा में परिवर्तित हो गया । तत्कालीन मण्डला नगर के हिसाब से यह जुलूस बहुत बड़ा था। सभा को श्री मन्नूलाल मोदी और श्री मथुराप्रसाद यादव ने संबोधित किया। तब सभा की बागडोर उदय चंद ने सम्हाली, उन्होंने लोगों से पत्थर नहीं फेंकने का आग्रह किया। इसी बीच पुलिस ने बर्बरता से लाठी चलानी शुरू कर दी। अनेक लोग पुलिस की लाठी के शिकार हुए। दोनों भाईयों को लाठियों की मार पड़ी। जुलूस तितर-बितर हो गया। उदयचंद ने बाबूराम को पीछे हटने का निर्देश दिया। बाबूराम इतवारी बाजार की ओर चले गये और घूमकर लकड़ी के पुल पर से होते हुए फतह दरवाजा प्राथमिक शाला के सामने पहुंच गये। तब पुलिस ने हवा में गोलियां चला दीं और लोगों को हट जाने का आदेश दिया।
प्रसिद्ध स्वाधीनता सेनानी श्री गोपाल प्रसाद तिवारी ने अपने संस्मरण - 'मैंने देखी है उदयचंद जैन की शहादत' में लिखा है- . ( जब ) लोग भागने लगे तब मैंने श्री उदयचंद जैन से कहा कि - " कहीं ऊँचे स्थान पर खड़े होकर जनता को प्रदर्शन करते रहने को कहो, मैं भीड़ में घुसकर लोगों को इकट्ठा करता हूँ।" इस पर श्री उदय चंद कुएं की पनघट पर चढ़ गये और जनता से शान्तिपूर्ण प्रदर्शन जारी रखने का अनुरोध करने लगे। जनता पुन: इकट्ठी होकर नारे लगाने लगी। लोग रोष में थे किन्तु प्रदर्शन शान्तिपूर्ण था। मजिस्ट्रेट श्री मालवीय ने पुनः लोगों से घर चले जाने की चेतावनी दी, अन्यथा गोली चलाने की मंशा बताई।'
पुलिस की ज्यादतियों को श्री सरमन लाल गौतम और श्री विजय दत्त झा बर्दाश्त नहीं कर पाये और उन्होंने पुलिस को बुरी तरह लताड़ा। उप जिलाधीश ने पुलिस को गोली चलाने का आदेश दिया। वीर उदय चंद ने अपनी छाती खोल दी। उन्होंने कमीज को फाड़ते हुए खींचा, जिससे कमीज का बटन टूट गया, उन्होंने पुलिस को ललकारा कि 'गोली चला दी जाये, वे उसे झेलने के लिए तैयार हैं' इस समय वे कंसरिया रंग की आधे बाजू की खादी की कमीज और धोती पहने हुए थे। पुलिस की गोली चली वे इसको झेलने के लिए उचके और गोली पेट को चीरते हुए शरीर में घुस गई। 'भारत माता की जय', 'तिरंगे झंडे की जय' के साथ उदयचंद गिर पड़े और खून की नदी बह चली। वे बेहोश हो गये थे। लोग उन्हें उठाने के लिए दौड़े, लेकिन पुलिस ने लोगों को आगे नहीं बढ़ने दिया। लोग जहां के तहां खड़े रह गये। पुलिस ने लाठियों का स्ट्रेचर बनाया और उस पर उदय चंद के बेहोश और खून से लथपथ शरीर को डाल दिया। पुलिस उन्हें कुछ ही दूरी पर स्थित शासकीय अस्पताल ले गई। बाबूराम को महाराजपुर के एक बुजुर्ग सज्जन महाराजपुर ले गये। भीड़ अस्पताल की ओर दौड़ पड़ी। लोग पुलिस के खून के प्यासे हो उठे थे।
पुलिस के घेरे में चिकित्सालय में उदय चंद की शल्य चिकित्सा की गई। उन्हें समीप के पेइंग वार्ड में ले जाया गया। छोटे-छोटे समूहों में पुलिस ने लोगों को उनके दर्शन करने दिये। लोगों ने उनके पैर छुए। नगर के सभी वर्गों के लोग अस्पताल की ओर दौड़ पड़े, कुटुम्बीजन दौड़े। शल्य चिकित्सा के उपरांत भी वे होश में नहीं आये। सभी लगातार 'भारत माता की जय', 'भारतवर्ष आजाद होगा' आदि नारे लगा रहे थे। मण्डला और आसपास के इलाके में तहलका मच गया। वे 15 अगस्त 1942 की रात्रि को तड़पते रहे और 16 अगस्त 1942 की प्रातः वीरगति को प्राप्त हो गये । उदय चंद मरकर भी अमर हो गये ।
जिलाधीश श्री गजाधर सिंह तिवारी और पुलिस अधीक्षक श्री खान ने उदयचंद के पिताजी सेठ श्री त्रिलोकचंद को अपने निवास पर बुलाया। जिलाधीश ने उनसे कहा था कि 'अमर शहीद के शव का चुपचाप दाहसंस्कार कर दिया जाये।' त्रिलोक चन्द जी ने दृढ़तापूर्वक इसका विरोध किया। नगर निवासी प्रशासन से क्रुद्ध हो गये थे। हिंसा की आशंका से स्थानीय प्रशासन आतंकित हो उठा था। नगर के प्रतिष्ठित वकील श्री असगर अली और महाराजपुर के मुंशी इब्राहीम खान ने क्रमशः मण्डला और महाराजपुर के नागरिकों की ओर से स्थानीय प्रशासन को आश्वस्त किया कि 'शवयात्रा के जुलूस में हिंसा नहीं भड़केगी। हाँ! यदि पुलिस जुलूस में शामिल हुई तो खून-खराबा रोका नहीं जा सकेगा।' मण्डला नगर स्तब्ध था। वह अपने सपूत को अन्तिम विदा देते हुए रो रहा था।
शवयात्रा का जुलूस अस्पताल से प्रातः 10.30-11.00 बजे के बीच प्रारम्भ हुआ। मण्डला और आस-पास के नागरिकों की भीड़ को पुलिस कभी नहीं संभाल पाती, पर जुलूस में पुलिस नहीं थी । तत्कालीन तहसीलदार श्री चौहान शवयात्रा में शामिल हुए थे। मण्डला के इतिहास में इतनी बड़ी शवयात्रा कभी नहीं निकली। नगर के सभी जाति-वर्ग के लोग शवयात्रा में शामिल थे। कहा जाता है कि लगभग नौ हजार लोग उनकी शवयात्रा में शामिल थे। उस समय मण्डला मात्र 12 हजार की बस्ती थी । अमर शहीद का शव तिरंगे में लिपटा हुआ था। भीड़ नारे लगाते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी । रपटा होते हुए शवयात्रा का जुलूस बंजर नदी के किनारे स्थित श्मशान घाट पर पहुँचा। लगभग 2 बजे उनके पार्थिव शरीर को चिता पर रखा गया। श्री चेतराम चौधरी ने बिलखते हुए हृदय पर पत्थर रखकर उनका अग्नि संस्कार किया । चिता धू-धू कर धधक उठी, उनका पार्थिव शरीर देखते-देखते भस्म हो गया।
उनकी कीर्ति को चिरस्थायी बनाने के लिए उदय चौक पर त्रिकोणाकार लाल लाट (पत्थर) का 'उदय स्तम्भ' बना है। समीप ही नगर पालिका, मण्डला द्वारा निर्मित 'उदय प्राथमिक विद्यालय' बना है। जगन्नाथ हाई स्कूल में उनकी प्रतिमा स्थापित की गई है। महाराजपुर में उनका समाधि स्थल है, जहाँ प्रतिवर्ष 16 अगस्त को मेला लगता है और इस अमर शहीद को श्रद्धांजलि दी जाती है। मण्डला के प्रखर कवि श्री मुरारी लाल के शब्दों में-
"अमर वीर माँ का दुलारा उदय
प्यारा उदय मेरा प्यारा उदय
पन्द्रह अगस्त सन् बयालीस की बात
नहीं भूल सकता वो खूनी प्रभात
जहाँ से हुआ शहीद प्यारा उदय
खुले वक्ष पर झेल गोली का बार
गुलामी की जंजीर पर कर प्रहार
किया माँ के ऋण का चुकारा उदय
सिखाया हमें मर के जीने का मोल
मरण क्षण लो 'जयहिन्द' 'जयहिन्द' बोल
बना पथ प्रदर्शक हमारा उदय
प्यारा उदय मेरा प्यारा उदय
हम सब मिल आपस के बैरों को भूल
चढ़ाते तेरी कब्र पर आज फूल
नमन हो स्वीकृत हमारा उदय
प्यारा उदय मेरा प्यारा उदय ।"
(देखें - साप्ताहिक हिन्दुस्तान, 16 अगस्त, 1992, पृष्ठ 28 )
आ)- (1) म) प्र) स्व0 सै0 भाग 1, पृष्ठ 204 (2) साप्ताहिक हिंदुस्तान, 16 अगस्त 1992, पृष्ठ 28 (3) म0, 15 अगस्त 1987 (4) जै० स० रा० अ० (5) नवीन दुनियां जबलपुर 15 अगस्त 1992 ( 6 ) अनेक स्मारिकायें ( 7 ) शहीद गाथा, पृष्ठ । से 29 (8) क्रान्ति कथायें, पृ0 788 ( 9 ) नई दुनियां, इन्दौर, 2-8-1997
स्तोत्र: पुस्तक 'स्वतंत्रता संग्राम में जैन'|
Links:
1. आजादी का अमृत महोत्सव: https://amritmahotsav.nic.in/unsung-heroes-detail.htm?5529
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