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Showing posts from March 18, 2025

स्वतंत्रता संग्राम में जैन: सेनानी अण्णा पत्रावले

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  "अध्यापको! नौकरियाँ छोड़ दो और देश को स्वतन्त्र कराने के लिए क्रान्ति कार्य में शामिल हो जाओ। 'अंग्रेजो यहाँ से भागो।' ऐसी घोषणा कर अंग्रेजों को जला दो।" अपनी तिमाही परीक्षा की कापी में यह लिखकर 1942 के आन्दोलन में कूद पड़ने वाले 17 वर्षीय नौजवान अमर शहीद अण्णा पत्रावले या अण्णासाहेब पत्रावले को आज हम भले ही भूल गये हों, पर भारतीय स्वातन्त्र्य समर के इतिहास में उनका नाम सदा अमर रहेगा। 1942 का 'भारत छोड़ो आन्दोलन' एक ऐसा निर्णायक आन्दोलन था, जिसमें हजारों नहीं लाखों की संख्या में नौजवान विद्यार्थी अपनी पढ़ाई छोड़कर कूद पड़े थे। 'करो या मरो' उनका मूल मंत्र था। इसी आन्दोलन में भारत माँ पर अपना सर्वस्व समर्पण करने वाले अण्णा साहब भी शहीद हो गये थे। अण्णा पत्रावले का जन्म 22 नवम्बर 1925 को हातकणंगले, जिला-सांगली (महाराष्ट्र) में अपने नाना के घर एक जैन परिवार में हुआ। माँ इन्दिरा उस दिन सचमुच इन्दिरा - लोकमाता बन गईं जब अण्णा साहब ने उनकी कोख से जन्म लिया। पिता एगमंद्राप्पा व्यंकाप्पा उस दिन बहुत प्रसन्न थे। नाना के घर बधाईयाँ बज रहीं थीं। अण्णा साहब बचपन ...

स्वतंत्रता संग्राम में जैन: सेनानी कुमारी जयावती संघवी एवं नाथालाल शाह उर्फ नत्थालाल शाह

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प्रथम कहानी अहमदाबाद (गुजरात) की कुमारी जयावती संघवी भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन की वह दीपशिखा थीं जो अपना पूरा प्रकाश अभी दे भी नहीं पायीं थीं कि जीवन का अवसान हो गया । जयावती का जन्म 1924 में अहमदाबाद में हुआ था। 5 अप्रैल 1943 को अहमदाबाद नगर में ब्रिटिश शासन के विरोध में एक विशाल जुलूस निकाला जा रहा था । प्रमुख रूप से यह जुलूस कॉलेजों के छात्र-छात्राओं का ही था। इसमें प्रमुख भूमिका जयावती संघवी निभा रही थीं। जुलूस आगे बढ़ता जा रहा था, पर यह क्या ? अचानक पुलिस ने जुलूस को तितर-बितर करने के लिए आँसू गैस के गोले छोड़ना प्रारम्भ कर दिया। स्वाभाविक था कि गोले आगे को छोड़े गये, अतः नेतृत्व करती जयावती पर इस गैस का इतना अधिक प्रभाव पड़ा कि उनकी मृत्यु हो गयी। आ) (1) क्रान्ति कथाएँ, पृ० 808 (2) शोधादर्श, फरवरी 1987

स्वतंत्रता संग्राम में जैन: सेनानी साबुलाल जैन बैसाखिया जैन

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अत्यल्प वय में ही स्वतंत्रता की बलिवेदी पर अपनी कुर्बानी देकर भारत माँ को परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त कराने का रास्ता प्रशस्त कर गये शहीदों में गढ़ाकोटा, जिला - सागर ( म०प्र०) के अमर शहीद श्री साबूलाल बैसाखिया का नाम अग्रगण्य है। साबूलाल का जन्म 1923 ई० में गढ़ाकोटा में हुआ। पिता पूरन चंद, वास्तव में उसी दिन पूरन (पूर्ण) हुए थे, जब साबूलाल ने उनके घर जन्म लिया। बालक साबूलाल ने स्थानीय स्कूल में ही पांचवीं तक शिक्षा ग्रहण की। उन दिनों दर्जा पांच पास कर लेना भी बहुत समझा जाता था। साबूलाल की इच्छा और अधिक पढ़ने की थी, पर पिता की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, अतः असमय में ही उन्हें पढ़ाई छोड़कर गृहकार्य में लग जाना पड़ा। पर इससे देश-प्रेम की जो भावना उनमें जाग चुकी थी, वह मन्द नहीं पड़ी प्रत्युत दिन-ब-दिन बढ़ती ही गई। 1942 का 'भारत छोड़ो आन्दोलन' निर्णायक था। भारत माँ आजादी के लिए तड़फड़ा रही थी, रणबांकुरे एक-एक कर इस यज्ञ में अपना होम देने के लिए तैयार थे। सारे देश में हड़तालों, जुलूसों, सभाओं आदि का आयोजन हो रहा था । स्त्री और पुरुष सभी इस आन्दोलन में सहभागी थे। बुन्देलखण्...