स्वतंत्रता संग्राम में जैन: सेनानी साबुलाल जैन बैसाखिया जैन

अत्यल्प वय में ही स्वतंत्रता की बलिवेदी पर अपनी कुर्बानी देकर भारत माँ को परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त कराने का रास्ता प्रशस्त कर गये शहीदों में गढ़ाकोटा, जिला - सागर ( म०प्र०) के अमर शहीद श्री साबूलाल बैसाखिया का नाम अग्रगण्य है। साबूलाल का जन्म 1923 ई० में गढ़ाकोटा में हुआ। पिता पूरन चंद, वास्तव में उसी दिन पूरन (पूर्ण) हुए थे, जब साबूलाल ने उनके घर जन्म लिया। बालक साबूलाल ने स्थानीय स्कूल में ही पांचवीं तक शिक्षा ग्रहण की। उन दिनों दर्जा पांच पास कर लेना भी बहुत समझा जाता था। साबूलाल की इच्छा और अधिक पढ़ने की थी, पर पिता की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, अतः असमय में ही उन्हें पढ़ाई छोड़कर गृहकार्य में लग जाना पड़ा। पर इससे देश-प्रेम की जो भावना उनमें जाग चुकी थी, वह मन्द नहीं पड़ी प्रत्युत दिन-ब-दिन बढ़ती ही गई।

1942 का 'भारत छोड़ो आन्दोलन' निर्णायक था। भारत माँ आजादी के लिए तड़फड़ा रही थी, रणबांकुरे एक-एक कर इस यज्ञ में अपना होम देने के लिए तैयार थे। सारे देश में हड़तालों, जुलूसों, सभाओं आदि का आयोजन हो रहा था । स्त्री और पुरुष सभी इस आन्दोलन में सहभागी थे।

बुन्देलखण्ड का हृदय 'सागर' आजादी की इस बयार से अछूता कैसे रहता । सागर शहर ही नहीं पूरे जिले में इस आन्दोलन ने एक क्रांति ला दी थी। प्रायः प्रतिदिन हड़ताल, जुलूस और आम सभायें हो रही थीं। छात्रों की भागीदारी भी इसमें कम नहीं थी, वे स्कूल छोड़-छोड़कर आजादी की इस लड़ाई में कूद पड़े थे।

22 अगस्त 1942 को गढ़ाकोटा में एक वृहत् सभा का आयोजन हुआ । सर्व सम्मति से तय हुआ कि 'अंग्रेजी शासन तन्त्र का प्रतीक पुलिस थाना यहाँ है, अतः इस पर ही तिरंगा झंडा फहराया जाये।' तत्काल ही उस सभा ने एक जुलूस का रूप ले लिया। जुलूस का नेतृत्व गढ़ाकोटा की वीरांगना पार्वतीबाई कर रहीं थीं। जुलूस में लगभग ढाई हजार स्त्री-पुरुष थे। यह संख्या किसी बड़े शहर के लिए कम प्रतीत हो सकती है, पर गढ़ाकोटा जैसे कस्बे में इतना बड़ा जुलूस शायद ही कभी निकला हो ।

'भारत माता की जय', 'इंकलाब जिन्दाबाद', 'अंग्रेजो भारत छोड़ो' आदि नारे लगाता हुआ जुलूस पुलिस थाने पहुँचा | सैकड़ों नवयुवक हाथ में तिरंगा लिये, 'पहले मैं झंडा चढाऊँ !' 'पहले झंडा मैं चढाऊँ ! ' इस भावना से आगे बढ़े जा रहे थे। इधर पुलिस को जुलूस की सूचना पहले ही मिल गई थी, वह प्रतिरोध को तैयार थी। जब युवकों ने झंडा चढ़ाने का प्रयत्न शुरू किया तब पुलिस ने चेतावनी दी, पर आजादी के मतवाले कहाँ मानने वाले थे। पुलिस ने लाठीचार्ज शुरू कर दिया। लाठी खाकर भी आजादी के दीवाने गिरते रहे और आगे बढ़ते रहे, पर अपने कर्तव्य से विमुख नहीं हुए ।

भीड़ को अनियन्त्रित देखकर पुलिस सब-इन्सपेक्टर गया प्रसाद खरे तथा कुछ अन्य सिपाहियों ने गोलियां चलाना प्रारम्भ कर दिया। पर गोलियों की परवाह किसे थी। साबूलाल भी हाथ में झंडा लिये थे, वे जानते थे कि थोड़ा भी आगे बढ़ना, मौत को आमन्त्रण देना है। जीवन की समाप्ति है। किन्तु 'जो घर से ही कफन बांधकर चला हो, उसे जीवन का मोह रोक नहीं सकता, वह तो क्षण-क्षण अपनी मृत्यु- प्रेमिका से मिलने को विह्वल रहता है।' साबूलाल अपने चार - पाँच साथियों के साथ आगे बढ़े, वे यूनियन जेक निकालकर तिरंगा ध्वज लगाने की कोशिश में लगे हुए थे। पर धांय धांय धांय तीन गोलियां चलीं और वे वहीं ढेर हो गये, अनेक लोग गिरफ्तार कर लिए गये।

साबूलाल, कुंजीलाल और पं० धनीराम दुबे को गोलियां लगीं थीं, अतः उन्हें तुरन्त सागर अस्पताल भेजा गया। पं() धनीराम और श्री कुंजीलाल तो बच गये पर साबूलाल मरकर भी अमर हो गये। 24 अगस्त 1942 को प्रात:काल उनके शव का जुलूस निकाला गया। जनता ने अश्रुपूरित नेत्रों से उन्हें अन्तिम विदाई दी।

1942 के आंदोलन में सागर जिले में सिर्फ साबूलाल ही शहीद हुए। इस सम्बन्ध में 'मध्यप्रदेश के स्वतंत्रता संग्राम सैनिक', भाग - 2, पृष्ठ 6 पर लिखा है- 'इस आन्दोलन (1942 ) में भारतीय अधिकारियों की सूझ-बूझ से सागर नगर में तो कोई दुर्घटना नहीं घटी, किन्तु जिले के एक छोटे से स्थान गढ़ाकोटा में अवश्य ही गोलीकाण्ड हो गया, जिसमें एक छात्र शहीद हुआ । यह घटना इस प्रकार बताई जाती है कि 22 अगस्त 1942 को एक बड़ा जुलूस गढ़ाकोटा नगर में निकाला गया, जो नगर के प्रमुख भागों से होता हुआ थाने की ओर बढ़ने लगा। इस जुलूस पर पुलिस ने गोली चलाई, जिसके फलस्वरूप एक छात्र श्री साबूलाल जैन शहीद हो गया। '

साबूलाल की शहादत ने विद्रोह की ऐसी ज्वाला भड़काई जिसने 1947 में देश को आजाद कराकर ही दम लिया।

अमर शहीद की स्मृति में सागर (म0प्र0) में एक कीर्तिस्तम्भ का निर्माण किया गया है, गढ़ाकोटा के प्राइमरी स्कूल का नाम साबूलाल के नाम पर रखा गया है। गुजरात राज्य शाला पाठ्यपुस्तक मण्डल. गांधीनगर द्वारा प्रकाशित, गुजरात में कक्षा - 7 की हिन्दी विषय की निर्धारित पाठ्यपुस्तक में 'आजादी की राह पर ' शीर्षक से साबूलाल पर एक पाठ दिया गया है।

आ) - ( 1 ) म) प्र) स्व0 सै0, भाग 2, पृष्ठ 6 ( 2 ) विन्ध्य वाणी, शहीद अंक, (1948) (3) प) जे० इ0. पृष्ठ 517 ( 4 ) अनेकान्त पथ, भोपाल 17-9-1992 (5) शहीद गाथा, पृष्ठ 12 ( 6 ) शोधादर्श, फरवरी 1988, पृष्ठ 27-29 (7) हिन्दी कक्षा- (गुजरात) पृष्ठ 118-121 (8) क्रांति कथायें, पृष्ठ 785 ( 9 ) पद्माकर स्मारिका, पृ० 36-37 ( 10 ) म) स0 15 अगस्त 1987 पृष्ठ ब 14-16 (11) नई दुनियां, इन्दौर, 19-11-1998




'पूर्ण स्वराज्य कहने में आशय यह है कि वह जितना किसी राजा के लिए होगा उतना ही किसान के लिए, जितना किसी धनवान - जमींदार के लिए होगा, उतना ही भूमिहीन खेतिहर के लिए, जितना हिन्दुओं के लिए, उतना ही मुसलमानों के लिए, जितना जैन, यहूदी और सिक्ख लोगों के लिए होगा, उतना ही पारसियों ओर ईसाइयों के लिए। उसमें जाति-पांति, धर्म अथवा दरजे के भेदभाव के लिए कोई स्थान नहीं होगा । '


महात्मा गांधी                                                                                                                                                    पूर्ण स्वराज्य का अर्थ


स्तोत्र: पुस्तक "स्वतंत्रता संग्राम में जैन" 


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