.. 1 ... युवावस्था से ही लगभग 35 वर्षों से सामाजिक कार्यों में रूचि होने के कारण पुणे (महाराष्ट्र) की स्थानीय संस्थाओं के साथ ही राष्ट्रिय संस्थाओं जैसे दिगंबर जैन महासमिति, दिगंबर जैन महासभा, जैन इंजीनियर्स' सोसाइटी आदि में भी सक्रीय रूप से कार्य करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । इस समय ऐसा आभास हुआ कि राष्ट्रिय संस्थाओं के सभी, विशेषकर उत्तर भारत के लगभग सभी वरिष्ठ कार्यकर्ताओं एवं पदाधिकारियों में अनभिज्ञनता के कारण यह धारणा बनी हुई है कि जैन धर्मानुयायी सिर्फ ओसवाल, पोरवाल, खंडेलवाल, अग्रवाल, हुमड़, पोरवाड़, परवार आदि उपजातियों तक ही सिमित हैं । जब कि तथ्य यह है कि जैन धर्म जन्म से नहीं बल्कि कर्म से जुड़ा हुआ है। अतः जो जैन धर्म के सिद्धांतो को मानता है एवं उसके अनुसार आचरण करता है, वही सच्चा जैनी है । इस सिद्धांत के अनुसार दक्षिण भारत विशेषकर महाराष्ट्र एवं कर्नाटक राज्य के कुछ जिलों के सम्पूर्ण गावों के निवासी जैन धर्मानुयायी हैं । लेकिन वे उपरोक्त किसी भी उपजाति से सम्बन्ध नहीं रखते हैं, बल्कि चतुर्थ या पंचम कहलाते हैं । ये सभी अधिकतर कृषि करते हैं या गांव की जरुरत के अनुसार वि...