अखिर क्यों प्याज लहसुन पर ताना मार मारकर जैनियों का हाल बेहाल कर रखा है!
जैनियों पर दिन प्रतिदिन आलू प्याज के उपयोग के ऊपर निरंतर अलग-अलग तरीके से ताने मारे जाते हैं| इन तानों में जैनियों को अपमानित किया जाता है कि वह प्याज लहसुन जैसे शाकाहारी सब्जी का उपयोग क्यों नहीं करते हैं| प्याज लहसुन पर ताना मार मारकर जैनियों का हाल बेहाल कर रखा है!
जैन संस्कृति में कंदमूल का निषेध है| जो शाक सब्जी जमीन के नीचे उगती हैं उनका प्रयोग वर्जित होता है|
उसके पीछे और भी अनेक कारण होते हैं| प्याज लहसुन एवं अनेकों कंदमूल में अनंत संख्या में निगोदिया जीव होते हैं| इन निगोदिया जीवों की उत्पत्ति के कारण ही प्याज लहसुन बैंगन गाजर मूली आलू इनका सेवन जैन धर्म संस्कृति के अनुसार अनुचित है| वर्तमान समय में अभी भी बड़ी संख्या में जैन अनुयाई इनका उपयोग दैनिक जीवन में नहीं करते हैं परंतु अन्य भारतीय समाज में इस जानकारी का बड़ा अभाव है| जिसके कारण एक ऐसी स्थिति बन गई है देश में जहां बहुत कम संख्या में भारतीय कंदमूल या प्याज लहसुन का सेवन नहीं करते हैं| इस श्रेणी में अधिकांश जैन ही आते हैं फलस्वरूप जैनियों के ऊपर बार-बार यह ताना मारा जाता है कि वह वह इन शाक सब्जी का उपयोग क्यों नहीं करते हैं|
निगोदिया जीवों की परिभाषा के संदर्भ में उचित ज्ञान और जानकारी भारतीय समाज को नहीं है| जैनियों में भी इसके संबंध में सही ज्ञान का बहुत बड़ा अभाव है| निगोदिया जीवों के लिए अंग्रेजी या साइंस की भाषा में माइक्रोस्कोपिक बैक्टीरिया या एलिमेंट्स या हिंदी में सूक्ष्म जीवाणु कहकर संबोधित कर सकते हैं| जैन संस्कृति अनुसार इन सूक्ष्म जीवाणु की क्षति या हिंसा को पाप की श्रेणी में रखा गया है और इसलिए इसके उपयोग पर निषेध है| अतः हमें यह समझना होगा निगोदिया शब्द थोड़ा कठिन है इसे हर व्यक्ति आसानी से सरलता से नहीं समझ सकता|
निगोदिया जीवों के विषय को गहराई से समझने के लिए अगर प्याज लहसुन आलू के एक छोटे से भाग को माइक्रोस्कोप के नीचे स्लाइड द्वारा रखकर अध्ययन किया जाए तो हमें उसमें असंख्य प्रकार के सूक्ष्म जीवाणु घूमते या तैरते हुए नजर आएंगे| ऐसे सूक्ष्म जीवाणु अन्य शाक सब्जी में नहीं देखे जाते हैं| उदाहरण लौकी भिंडी तोरी इत्यादि इत्यादि| यहां तक की जो दाल चावल अनाज फल हैं उन में भी इस प्रकार के सूक्ष्म जीवाणु की उत्पत्ति नहीं होती है जब तक वह सड़ते नहीं है| इस तथ्य पर भारतीय समाज में अधिकांश रूप से सही जानकारी उपलब्ध नहीं है| जो नागरिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जटिल विषय को समझते हैं उनके लिए यह माइक्रोस्कोप का उदाहरण अत्यंत महत्वपूर्ण है|
इसके आगे और भी अन्य कारण है प्याज लहसुन का उपयोग जैन संस्कृत में प्राय क्यों नहीं होता है| व्यावहारिक दृष्टि से अगर देखते हैं तो प्याज लहसुन दोनों में ही तीव्र गंध या बदबू होती है| आम तौर पर देखा जाता है इनके तुरंत सेवन करने के पश्चात हम उन व्यक्तियों के समीप नहीं जाना चाहते हैं जिन्होंने इसको खाया है| क्योंकि इससे उनके सांस या बोलने पर तेज बदबू आती है तो अधिकांश लोग ऐसे समय उन व्यक्तियों से दूरी बनाकर रखते हैं| यह व्यवहार केवल भारत तक सीमित नहीं है अपितु सम्पूर्ण विश्व में देखा जा सकता है|
जैन संस्कृति के अलावा वैदिक हिंदू संस्कृति में भी उनके पूजा पद्धति और उपासना में प्याज लहसुन जैसे तामसिक शाक सब्जी का निषेध देखा जाता है| वैष्णव पंथ में विशेष रूप से यह देखने को मिलता है| प्याज लहसुन का उनके यहां भी काफी निषेध है| अनेकों वैष्णव अनुयायियों के घरों में भी प्याज लहसुन का निरंतर या पूर्ण सेवन नहीं होता है| विशेषकर जब उनके घरों में ठाकुर जी स्थापना होती है| उनके मंदिरों में जब पूजा पाठ होती है भगवान को भोग चढ़ाया जाता है तो उसमें प्राय और अधिकांश समय यह देखा जाता है कि जो भोग भगवान को अर्पित किया गया है और उसके पश्चात भक्तों में प्रसाद के रूप में वितरण हुआ उसमें प्याज लहसुन मिश्रित नहीं होता है|
सिख धर्म संस्कृति में भी यह देखा गया है कि जब उनके गुरुद्वारों में लंगर लगता है तो वहां पर भी सात्विक भोजन ही परोसा जाता है| जिसमें प्याज लहसुन प्राय उपयोग नहीं किया जाता| इस आधार पर यह सिद्ध होता है कि अभी भी वर्तमान समय में भिन्न-भिन्न भारतीय धर्म संस्कृति में प्याज लहसुन का उपयोग धार्मिक क्रियाओं में प्राय नहीं होता है|
जो लोग प्याज लहसुन का समर्थन करते हैं वह एक बहाना निरंतर समाज में साझा करते हैं कि उनके उपयोग से व्यक्तियों में कामोत्तेजना के स्तर में वृद्धि होती है| उनका तर्क है प्याज लहसुन का सेवन करेंगे तो दंपतियों में वैवाहिक सुख अधिक व्याप्त होगा और वह अनेक प्रकार की बीमारियों से भी बच सकेंगे| इस तथ्य के वैज्ञानिक प्रमाण प्राप्त नहीं होते है और यह मात्र एक धारणा है| अगर इसे सत्य मान भी लिया जाए तो प्राय दवाइयों का उपयोग बीमारी के समय ही किया जाता है| हम दवाइयों को भोजन के तरीके से हर समय उपयोग में नहीं लेते हैं|
प्याज लहसुन और सेक्स के सेवन का संबंध| इस तर्क को काफी लोगों ने मेरे यूट्यूब चैनल के पोस्ट पर हाइलाइट किया है AAKASH JAIN [Thinker] उनका कहना है जितना अधिक प्याज लहसुन का सेवन होगा पति-पत्नी के बीच की जो सेक्स लाइफ है वह उतनी ही बेहतर होगी| जब उनसे प्रमाण मांगे तो वह नहीं दे पाए| इसका मतलब है कि यह विचार मात्र एक भ्रमित धारणा है और इसका कोई भी साइंटिफिक बेसिस नहीं है हां यह बात सत्य है कि प्याज लहसुन तामसिक श्रेणी में आते हैं और जब तामसिक भोजन का निरंतर सेवन होता है तो शरीर में नकारात्मक ऊर्जा का स्तर बहुत अधिक बढ़ता है| जिसके कारण वासना की इच्छा व्यक्तियों में प्रबल होती है और वासना के अच्छे बुरे दोनों ही तरीके के प्रभाव हैं| जिसमें बुरे प्रभाव अधिक मात्रा में देखे जा सकते हैं|
प्याज लहसुन एवं अन्य कंदमूल शाक सब्जी की श्रेणी में ही आते हैं लेकिन धार्मिक और व्यवहारिक दृष्टि से एक जैन व्यक्ति को पहले यह कहा जाता है कि प्रथम में वह मांस का पूर्ण रूप से त्याग करें| उसको अपने जीवन से सदा के लिए हटाए तथा अन्य प्रकार के व्यसनों को भी अपने जीवन से दूर करें| जैसे शराब जुआ मधु शिकार वैश्यावृत्ति गुटका पान मसाला इत्यादि इत्यादि| उसके पश्चात वह अपने जीवन से कंदमूल को भी हटाए| क्योंकि इसमें सूक्ष्म जीवाणु की हिंसा का दोष लगता है| लेकिन मांस में पंच इंद्रिय जीवों की हत्या का दोष लगता है जो प्याज लहसुन से अनेक गुना अधिक बड़ा पाप है| तो पहले मांस छोड़ें उसके पश्चात अन्य व्यसनों को छोड़े और फिर कंद मूल का भी त्याग करें| कौन है असली जैन? क्या होता है सप्त व्यसन का त्याग? कैसे बनें एक जैन ?
लेख का उद्देश्य एवं सार है| भारतीय समाज को प्याज लहसुन कंदमूल का उपयोग जैन संस्कृत में क्यों नहीं होता है उससे संबंधित सही जानकारी और तथ्यों से उनको अवगत कराया जाए| जो कारण लेख में दिए हैं वही सत्य है अन्य भ्रामक जानकारी नहीं|
भवदीय|
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