ज्वलंत समस्या: जैन शिक्षा, छात्र और शेक्षिण संस्थान

 


देश भर में 500 से अधिक जैन अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थाएँ हैं। इनमें से अधिकांश संस्थाओं ने पैसा कमाने और RTE (शिक्षा का अधिकार) अधिनियम से बचने के लिए जैन अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान का दर्जा प्राप्त किया है। कई जैन शिक्षण संस्थाएँ केवल व्यावसायिक लाभ के लिए चल रही हैं।

देश भर में 30% से अधिक जैन अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने की स्थिति में नहीं हैं। दक्षिण भारत में तो 50% से अधिक जैन गरीब हैं और वे अपने बच्चों को अच्छे शिक्षण संस्थानों में पढ़ाने की स्थिति में नहीं हैं। ऐसी गंभीर स्थिति में, जैन समाज की अधिकांश शिक्षण संस्थाएँ, जिन्होंने सरकार से अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान का दर्जा लिया है, गरीब जैन बच्चों को कम शुल्क में प्रवेश नहीं दे रही हैं। वे केवल RTE अधिनियम से बचने के लिए अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान का दर्जा प्राप्त कर रहे हैं। RTE अधिनियम के तहत 25% गरीब बच्चों को प्रवेश देना अनिवार्य होता है, लेकिन यह कानून अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त संस्थाओं पर लागू नहीं होता है। ऐसे में, वे 25% सीटों का लाभ भी उठा रहे हैं और अन्य सरकारी सुविधाओं का भी फायदा ले रहे हैं। फिर भी, अधिकांश जैन अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थाएँ केवल पैसा कमाने और शिक्षा का व्यापार करने के लिए चल रही हैं। जो शिक्षण संस्थाएँ अल्पसंख्यक दर्जा नहीं लिए हैं, उनकी संख्या भी 500 से अधिक है, लेकिन वे तो व्यापार करने के लिए ही संस्थाएँ चला रही हैं। लेकिन जैन अल्पसंख्यक नाम का उपयोग करके पैसे कमाने वाली संस्थाओं का क्या?


समाज में बहुत कम लोग इन संस्थाओं के खिलाफ आवाज उठाते हैं, और जो उठाते हैं, उन्हें भी दबाने की कोशिशें की जाती हैं। राज्य और राष्ट्रीय स्तर के संगठन ऐसे संस्थाओं के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। शिक्षा ही श्रेष्ठ दान है। शिक्षा से ही आने वाली पीढ़ी धर्म की रक्षा और उद्धार के लिए काम कर सकेगी।

जैन धर्म के बच्चे शिक्षा के लिए क्रिस्चियन स्कूलों में जा रहे हैं। ऐसे में, इन बच्चों पर जैन धर्म के संस्कार कैसे होंगे? बचपन में ही धर्म के विपरीत संस्कार और शिक्षा मिलती है, तो ऐसे बच्चे आगे चलकर जैन धर्म का पालन कैसे करेंगे?



सौजन्य: ग्लोबल महासभा


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