Dr.Murli Manohar Joshi thoughts on Jain Religion relationship with Kumbh (कुम्भ) at Prayagraj.
जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के सम्पर्ण जीवनवृत्त एवं चिन्तन-दर्शन पर आधारित पूज्य माँ श्री कौशल जी द्वारा प्रणीत पुस्तक ज्ञानवर्द्धक, प्रेरक व प्रभावी है। तीर्थंकरों में सर्वप्रथम ऋषभदेव अपने युग के आदरणीय, मनीषी एवं लोकप्रिय पुरूष रहे हैं। प्राचीन ग्रंथों में भी उनका जितना वर्णन है वह जैन मान्यतानुरूप ही है। वे नाभि और मरूदेवी के पुत्र और भरत आदि सौ पुत्रों के पिता थे। उनके पुत्र भरत चक्रवर्ती के नाम पर ही हमारे देश का नाम भारतवर्ष हुआ। उनके दीक्षा लेने के समय प्रजा ने बहुत बड़ा यज्ञ किया था, अतः यह स्थान प्रयाग नाम से प्रसिद्ध हुआ। उसी समय बड़े बड़े कलशों से उनका अभिषेक किया गया था। कई लोगों की मान्यता है कि महाकुंभ का मेला तभी से प्रचलित हुआ। उनका ज्ञान विलक्षण था तथा जीवन निस्पृह था। उन्हें अष्टम् अवतार भी माना जाता है। धर्मनेता, राजनेता, समाजवेत्ता, अर्थवेत्ता के रूप में प्रजाजनों को प्रदत्त उनकी शिक्षाएं तथा नीति एवं ज्ञान आज भी प्रांसगिक हैं। विश्वकर्मा, प्रजापति योगस्रष्टा के रूप में माँ श्री ने ऋषभदेव को व्याख्यायित किया। पुस्तक में विष्णुपुराण, भगवत आदि के भी प्रमाणिक तथ्य होने से विश्वसनीयता वृद्धिगत हुई हैं।
तीर्थंकर ऋषभदेव युगपुरूष और कालजयी हैं। अतः उनकी शिक्षा और दर्शन को जन-जन में प्रचार होना चाहिए। वे सम्प्रदायातीत हैं। पूज्य माँ श्री पुस्तक के प्रणयन के लिए अभिनन्दनीय हैं। मैं कामना करता हूँ कि वह इसी प्रकार ज्ञानामृत का वितरण करती रहें और समाज उससे लाभान्वित होता रहे।
(डॉ. मुरली मनोहर जोशी)
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प्रणाम !
ReplyDeleteप्रजापति कहलाए भगवान ऋषभदेव इसीलिए, असि मसि कृषि वाणिज्य शिल्प और विद्या का ज्ञान उन्होंने ही दिया, सामाजिक व्यवस्था बनाई, जो आज भी यथावत चल रही हैं! शासन प्रशासन न्याय दंड व्यवस्था सभी का ज्ञान दिया था उन्होंने ही, प्रथम तीर्थंकर हुए वो इस युग के !
जिनके बेटे भरत चक्रवर्ती हुए, जिनके नाम पर ही देश का नाम भारत पड़ा!
बारह वर्ष का एक कल्प होता है, बारह वर्षों में बॉडी का सब खून आदि बदल जाता है, बारह वर्षों में कुंभ का इसीलिए महत्व है, इस प्रकार स्नान आदि करने से होता नवीन ऊर्जा का संचयन शरीर के अंदर !
जय जिनेन्द्र जी !
आभार !!
आपका अत्यंत आभार|
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