क्या पूर्व इतिहास में तिरुपति बालाजी श्रमण जैन मंदिर (जिनालय) था?


यह खबर जैन गजट जुलाई 2013 में प्रकाशित हुई थी। ये सब बातें स्वयं हिन्दू इतिहासकारों ने सिद्ध कीं। तिरुपति के बालाजी मंदिर जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर नेमिनाथ भगवान का मंदिर हुआ करता था। 8वीं सदी में गुरु रामानुजम और गुरु शंकराचार्य ने अपने शिष्यों के साथ मिलकर इसे हिंदुओं के वेंकटेश्वर भगवान के मंदिर में बदल दिया था। ऐसा उन्होंने वहां के क्षेत्रीय राजा की मदद से किया था। न केवल यह मंदिर बल्कि द्रविड़ जैन सभ्यता के सभी मंदिरों को हिन्दू मंदिरों में बदल दिया गया था। ऐसा वहां के ब्राह्मणों ने अपने निजी स्वार्थों के लिए और आजीविका हासिल करने के लिए किया। बताते चलें कि दक्षिण भारत की द्रविड़ जैन सभ्यता के सभी मंदिर सुमेरू पर्वत की स्वरूप(डिजाइन) से प्रेरित हैं। सुमेरू पर्वत पिरामिडनुमा है। सभी मंदिरों को सुमेरु पर्वत की बाह्य डिजाइन के आधार पर बनाया गया था। यहां तक कि बाहर की चारों तरफ की पिरामिडनुमा चतुष्फलकीय संरचना का अनुपात भी वही है। सुमेरु पर्वत का जैन धर्म में बड़ा महत्व है। इसी पर्वत पर प्रत्येक तीर्थंकर का प्रथम जन्माभिषेक इंद्र सहित स्वर्ग के देवता करते हैं। उस समय जब ये मंदिर बने थे, तब ये उत्कृष्ट शिल्पकला और वास्तुकला का नमूना थे। और ज्यादातर मंदिर अतिशयकारी और चमत्कारी थे। ज्यादातर मंदिरों में तहखाने थे जिनमें राजाओं और सेठों द्वारा चढ़ाये गए भारी मात्रा में सोना,चांदी,हीरे जवाहरात व अन्य रत्न रखे थे। वे आज भी रखे हैं। क्योंकि ज्यादातर तहखानों को आज तक खोला ही नहीं जा सका। फिर गुरु रामानुजम और गुरु शंकराचार्य ने अपने शिष्यों के साथ मिलकर बुखारिया राजा विजयनगर की शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए सभी मंदिरों को हिंदू मंदिरों में बदल दिया। और जैनों और हिंदुओं में एक संधि हुई कि इस सब के बदले वे श्रवणबेलगोला के बाहुबली भगवान की प्रतिमा को नष्ट नहीं करेंगे अन्यथा राज्य के सभी जैनों को दंडित किया जाएगा। देश के सभी हिन्दू मंदिरों में भगवान का श्रृंगार सभी भक्तों के सामने होता है। किंतु तिरुपति बालाजी में श्रृंगार करते समय मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं, फिर सबसे छिपाकर श्रृंगार होता है। और बहुत से आभूषणों से प्रतिमा को ढँक दिया जाता है। जबकि मूल प्रतिमा चित्र में दिखाए अनुसार है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के वरिष्ठ निदेशक डॉ. Santhalingam और उनके सहायकों ने एएसआई शोध तथ्यों में प्रकाशित किया है, कि राज्य में हर पुराना मंदिर जो दक्षिण भारत की द्रविड़ जैन सभ्यता का जैन मंदिर था, वर्तमान में विभिन्न ब्राह्मणों के द्वारा बनाई गई व्यवस्था के अनुसार जाना जाता है। कुछ द्रविड़ जैन सभ्यता के 1000 ईस्वी से बाद के मंदिरों के उदाहरण निम्नलिखित हैं जिन्हें जैन मंदिरों से हिन्दू मंदिरों में बदला गया। 1) मदुरै मीनाक्षी मंदिर। 2) कांचीपुरम कामाक्षी कांचीपुरम (कांचीपुरम में 100 से अधिक मंदिर हैं)। 3) Varadaperumal मंदिर कांचीपुरम। 4) Thiruvanmalai मंदिर अरूणाचलम। 5) Mylapore kapaliswara मंदिर। 6) नागराजा मंदिर nagercoil में। 7) थिरूमला बालाजी मंदिर, (Arni जिले में Thirumalai जैन मंदिर के सादृश्य)। 8) पद्मनाभ स्वामी मंदिर। डा. Santhalingam ने व्यक्त किया कि राजनैतिक परिस्थितियों के कारण इन तथ्यों को नहीं बताया गया। लेकिन सत्य यही है। उन्होंने यह भी कहा संत तिरुवल्लुवर एक जैन संत जो प्रसिद्ध तमिल संस्कृति से हैं उन पर भी दवाब बनाया गया सच्चाई न बताने के लिए। यहां तक कि तमिल द्रविड़ जैन ब्राह्मी भाषा से बाहर का जन्म की कहानी विकसित की गई वेंकटेश्वर भगवान के जन्म की। जबकि सभी जानते हैं कि श्री विष्णु के सभी अवतारों में से एक का भी नाम वेंकटेश्वर नहीं था। पूरे विष्णु पुराण में वेंकट अवतार का जिक्र नहीं है। अब पर्याप्त सबूत epigraphy से भी उपलब्ध हैं। उनके अनुसार आर्य ब्राह्मणों जैन मंदिरों पर हमला किया और उन्हें अपनी आजीविका के स्रोत के रूप में बदल दिया।

स्रोत: जैन गजट 2013 एवं अन्य जैन पुस्तकों में प्रकाशित समाचार और तथ्य|

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