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Showing posts from January, 2025

HC calls for proposals to clear Khandagiri encroachments Year'2024

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  TIMES CITY Cuttack: Expressing concern over encroachments surrounding the historically significant Khandagiri ca- ves on the outskirts of Bhubaneswar, the Orissa high court on Monday summoned senior administrative, police and ASI officers to appear in person with their proposed schemes for removal of encroachments from the protected site. A two-judge bench of Chief Justice Chakradhari Sharan Singh and Justice Savitri Ratho summoned the dis- trict magistrate (Khurda). deputy commissioner of police (Bhubaneswar) and superintending archaeologist of Archaeological Survey of India (Bhubaneswar circle) to appear in person on Oct 8'24. "They shall be required to be personally present in court with their proposed schemes for removal of en- croachments from the pro- A petition was filed seeking judicial intervention against encroachments at the protected site. We expect them to hold a meeting to chalk out a plan to assist the court," the bench said. The directive was issued afte...

News: The encroachment issue of Girnar Ji Jain Tirth Kshetra was raised in Parliament.

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Date: 02/12/2024 On the issue of Girnar Ji Tirth Kshetra, Imran Masood, the Member of Parliament from Saharanpur, has given a notice to the Speaker of the Lok Sabha to take cognizance of this matter of public importance during Zero Hour. The notice has been accepted. The Leader of the Opposition in the Lok Sabha, Honorable Rahul Gandhi, is in agreement with this. "Honorable Speaker, Today, I would like to draw the attention of this House to an extremely important and sensitive issue. This is not only related to religious faith but also concerns the protection of the cultural heritage and rights of the minority Jain community. Honorable Speaker, the sacred Girnar Mountain, located in the Junagadh district of Gujarat, is the place where Lord Neminath, the 22nd Tirthankara of Jainism, attained Nirvana. This Nirvana place of Lord Neminath has been revered by Jain followers for centuries with faith and devotion. Today, there is an illegal occupation of this place. Historical texts su...

जैन संस्कृति- डिजिटल युग में फिल्म निर्माण की प्रासंगिकता

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  बीते कुछ दशकों तथा हाल के दस वर्षों से लेकर वर्तमान समय में वीडियो फिल्म्स या चलचित्र (फिल्म मूवी या सिनेमा) के द्वारा समाज के समक्ष विभिन्न धार्मिक सामाजिक राष्ट्र-हित विषयों का प्रचार-प्रसार करने का एक महत्वपूर्ण एवं सरल विकल्प और माध्यम के रूप में विकसित हुआ है| इक्कीसवीं सदी में मीडिया और फिल्म का सामाजिक प्रभाव अत्यंत गहरा एवं दूरगामी है| समाज में युवा एवं मध्यम आयु के वर्ग (जिन्होंने अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा ग्रहण करी) में पुस्तकों और ग्रंथों के पठन-पाठन की रुचि में निरंतर गिरावट देखी जा रही है| जैन अजैन दोनो ही वर्ग के धार्मिक एवं सामान्य परंतु शिक्षित अनुयाई आम पुस्तक ग्रंथ और शास्त्रों को पढ़ने में रुचि कम रखने लगे हैं| इंटरनेट एवं डिजिटल युग के आगमन के कारण यह वर्ग समस्त धार्मिक सांस्कृतिक शास्त्रीय सामग्री कंप्यूटर या मोबाइल फोन पर ही पढ़ना देखना सुनना चाहता है| या फिर विभिन्न विषयों पर यूट्यूब विडियोज और वीडियो डॉक्यूमेंट्री देखना पसंद करते हैं| जिसे कभी भी कहीं भी देखा सुना जा सकता है और इसके लिए जिनालय या घर के एक उक्त स्थान में जाकर आसन पर बैठने की आवश्यकता भी नही...

राजनीतिक उपेक्षा के शिकार जैन समुदाय को जागना होगा|

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  आदरणीय भाईयों बहनों सादर जय जिनेंद्र| आप समस्त जैन अनुयायियों को विदित होगा की सरकारी आंकड़ो अनुसार जैन समुदाय की जन संख्या 50 लाख के लगभग बताई जाती है जो एक असत्य आंकड़ा है| जैन धर्मावलंबियों के सभी सम्प्रदायों की जनसंख्या लगभग पांच करोड़ से अधिक है। उसके बावजूद राजनितिक पार्टियां जैन समाज को कम महत्व देती है। क्यों कि समाज में एकता की कमी होना और संगठित न रहना शामिल हैं। गौरतलब हो जैन भाईयों / बहनों पहली लोकसभा गठन के समय 60 से अधिक जैन सांसद सदन मे शोभा बढ़ाते रहे, जो धीरे- धीरे कम होते गये आज ऐसा वक्त आ गया कि एक भी जैन लोकसभा में बतौर सांसद मौजूद नहीं है। ये अत्यन्त गंभीर व विचारणीय प्रश्न है। अभी कुछ समय पहले अनोप मंडल ने जैन समाज को बदनाम करने का घिनौना कार्य किया (वह निरंतर यह घृरंत कार्य करते रहते हैं), परन्तु कोई भी राजनीतिक पार्टी समाज के साथ नहीं रही, मानो जैन समाज अछूत सा हो गया हो| एक बात और श्री सम्मेद शिखर जी को जब पर्यटन स्थल घोषित कर दिया गया तब 2018 में झारखण्ड मे तत्कालीन भाजपा की सरकार थी| तथा 2025 में नव निर्वाचित श्री हेमंत सोरेन की सरकार है और 15 जनवरी 202...

Dr.Murli Manohar Joshi thoughts on Jain Religion relationship with Kumbh (कुम्भ) at Prayagraj.

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A document written by Dr.Murli Manohar Joshi in relation to the historical relationship between Jain Heritage and Mahakumbh at Prayagraj. It was supposedly written & issued by him during his tenure as a Minister.of Human Resource Development. डॉ मुरली मनोहर जोशी जी द्वारा लिखित एक पत्र जिसमें जैन संस्कृति एवं कुंभ और प्रयागराज से उसके प्राचीन संबंध के संदर्भ में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करी गई है। दो शब्द जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के सम्पर्ण जीवनवृत्त एवं चिन्तन-दर्शन पर आधारित पूज्य माँ श्री कौशल जी द्वारा प्रणीत पुस्तक ज्ञानवर्द्धक, प्रेरक व प्रभावी है। तीर्थंकरों में सर्वप्रथम ऋषभदेव अपने युग के आदरणीय, मनीषी एवं लोकप्रिय पुरूष रहे हैं। प्राचीन ग्रंथों में भी उनका जितना वर्णन है वह जैन मान्यतानुरूप ही है। वे नाभि और मरूदेवी के पुत्र और भरत आदि सौ पुत्रों के पिता थे। उनके पुत्र भरत चक्रवर्ती के नाम पर ही हमारे देश का नाम भारतवर्ष हुआ। उनके दीक्षा लेने के समय प्रजा ने बहुत बड़ा यज्ञ किया था, अतः यह स्थान प्रयाग नाम से प्रसिद्ध हुआ। उसी समय बड़े बड़े कलशों से उनका अभिषेक क...

जैन जातियां - उनके 84 नाम|

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                                                              भारतीय सनातन समाज को वर्तमान समय यह जानकारी ज्ञात नहीं है की जैन संस्कृति में कितने प्रकार की जातियां होती हैं|  यह जातियां पूर्व इतिहास में केवल जैन धर्म ही मानते थे परंतु द्रव्य काल क्षेत्र के प्रभाव से वर्तमान समय में इनमे से कुछ जातियां किन्हीं कारणों से उनके मूल जैन धर्म-दर्शन से थोड़े दूर हो गए हैं| लेकिन जैन संस्कृति के मूलभूत संस्कार अभी भी इनमे विद्यमान हैं|   1 . खन्डेलवाल                                           2.अग्रवाल                                      3.परवार...

कश्मीरी पंडित मूलरूप से जैन धर्मावलंबी थे - डॉ. लता बोथरा

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डॉ. आम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय में कश्मीर जैन धर्म पर विशेष व्याख्यान कश्मीरी पंडित मूलरूप से जैन धर्मावलंबी थे - डॉ. बोथरा वर्तमान में जैन संस्कृति और कश्मीर दो अलग-अलग धाराएं प्रतीत होती हैं जबकि विगत में जैन संस्कृति के लिए कश्मीर का एक विशिष्ट स्थान है। जिस के साहित्यिक और ऐतिहासिक साक्ष्य अनेक ग्रंथों में उपलब्ध है। कश्मीर की ऐतिहासिकता पर जानकारी देने वाला प्रमुख प्रमाणिक ग्रंथ कवि कल्हन द्वारा रचित राजतरंगनी है। जिसमें जैन धर्म के कश्मीर में प्रभाव का वर्णन मिलता है। 1445 ईस्वी से पूर्व के अनेक राजाओं का उल्लेख इसमें मिलता है। गोविंद वंश के राजा सत्य प्रतिज्ञ अशोक और उनके पुत्र मेघवाहन, ललितादित्य के समय में जैन धर्म कश्मीर में अपनी पराकाष्ठा पर था। उक्त बात जैनोलॉजी की विशेषक डॉ. लता बोथरा ने 'जैन दर्शन शोध पीठ' डॉ. बी.आर.आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय महू में कश्मीर जैन धर्म विषय पर आयोजित व्याख्यान में कही। उन्होंने कहा कि जैन आचार्य वप्पटट सूरी और हेमचंद्राचार्य का संबंध कश्मीर से रहा है। कश्मीर के मूल निवासी कश्मीरी पंडित मूल रूप से जैन धर्मावलंबी...

ज्वलंत समस्या: जैन शिक्षा, छात्र और शेक्षिण संस्थान

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  देश भर में 500 से अधिक जैन अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थाएँ हैं। इनमें से अधिकांश संस्थाओं ने पैसा कमाने और RTE (शिक्षा का अधिकार) अधिनियम से बचने के लिए जैन अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान का दर्जा प्राप्त किया है। कई जैन शिक्षण संस्थाएँ केवल व्यावसायिक लाभ के लिए चल रही हैं। देश भर में 30% से अधिक जैन अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने की स्थिति में नहीं हैं। दक्षिण भारत में तो 50% से अधिक जैन गरीब हैं और वे अपने बच्चों को अच्छे शिक्षण संस्थानों में पढ़ाने की स्थिति में नहीं हैं। ऐसी गंभीर स्थिति में, जैन समाज की अधिकांश शिक्षण संस्थाएँ, जिन्होंने सरकार से अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान का दर्जा लिया है, गरीब जैन बच्चों को कम शुल्क में प्रवेश नहीं दे रही हैं। वे केवल RTE अधिनियम से बचने के लिए अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान का दर्जा प्राप्त कर रहे हैं। RTE अधिनियम के तहत 25% गरीब बच्चों को प्रवेश देना अनिवार्य होता है, लेकिन यह कानून अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त संस्थाओं पर लागू नहीं होता है। ऐसे में, वे 25% सीटों का लाभ भी उठा रहे हैं और अन्य सरकारी सुविधाओं का भी फायदा ले रहे हैं। फिर भी, अधिकांश ज...

स्वतंत्रता संग्राम में जैन: सेनानी लाला हुकुमचंद जैन ( कानूनगो)

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  1857 का स्वातन्त्र्य समर भारतीय राजनैतिक इतिहास की अविस्मरणीय घटना है। यद्यपि इतिहास के कुछ ग्रन्थों में इसका वर्णन मात्र सिपाही विद्रोह या गदर के नाम से किया गया है, किन्तु यह अक्षरशः सत्य है कि भारतवर्ष की स्वतन्त्रता की नींव तभी पड़ चुकी थी । विदेशी अंग्रेजी शासन के विरुद्ध ऐसा व्यापक एवं संगठित विद्रोह अभूतपूर्व था । इस समर में अंग्रेज छावनियों के भारतीय सैनिकों का ही नहीं, राजच्युत अथवा असन्तुष्ट अनेक राजा-महाराजाओं, बादशाह - नवाबों, जमींदारों- ताल्लुकदारों का ही नहीं, सर्व साधारण जनता का भी सक्रिय सहयोग रहा है। विदेशी सत्ता को उखाड़ फेंकने व विदेशी शासकों को देश से खदेड़ने का यह जबरदस्त अभियान था । इस समर में छावनियां नष्ट की गईं, जेलखाने तोड़े गये, सैकड़ों छोटे-बड़े खूनी संघर्ष हुए, भयंकर रक्तपात हुआ, अनगिनत सैनिकों का संहार हुआ, अनेक माताओं की गोदें सूनी हो गईं, अबलाओं का सिन्दूर पुछ गया । यद्यपि अनेक कारणों से यह समर सफल नहीं हो सका, पर आजादी के लिए तड़प का बीज - बपन इस समर में हो गया था । इस स्वातन्त्र्य समर में हिन्दू, मुस्लिम, जैन, सिख आदि सभी जातियों व धर्मों के देशभ...

Shelf Life & Limitation of Vegetarian Eatable Foods

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जैन लड़कियां और अन्य धर्मों में विवाह (Jain Girls & Inter Religious Jain Marriages)

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                                                                                                एक काल्पनिक कथा:   एक 35 साल के लड़के (जिस परिवार में नियमित मांस और शराब का सेवन होता था) ने एक 26 साल की जैन लड़की को फंसा लिया और दोनों घर से भाग कर जाने के लिए रेलवे स्टेशन जा रहे थे| पुलिस ने दोनों को पकड़ लिया और दोनों के परिवार वालो को थाने बुला लिया| थाने में दोनों परिवारों ने बहुत हंगामा किया| थानेदार समझदार था उसने दोनों परिवारों को समझा-बुझाकर घर भेज दिया और सुबह आने को कहा| रात में थानेदार ने जैन लड़की को अपने कमरे में बुलाया और समझाया लेकिन लड़की किसी भी हालत में उस लड़के से अलग होने को तैयार नहीं थी| तब थानेदार ने कहा, ठीक है सुबह हम तुझे उस लड़के के साथ भेज देंगे लेकिन आज तुम हमारे और अपने होने वाले पति के लिए अपने हाथ से भोजन बना के हम ...