Posts

भारतीय सकल जैन धर्म की जातियां

अरसु (कर्णाटक) असाटी अग्रवाल (हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान और भारत के अन्य काई राज्य) इंद्र (तटीय कर्णाटक) बंट (तटीय कर्णाटक) बघेरवाल/लाड (राजस्थान, विदर्भ-महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश) बोगार (कर्णाटक) भावसार (गुजरात) भाभडा (पंजाब) भोजक चरनगारे चतुर्थ (कर्णाटक, महाराष्ट्र) चिप्पिगा (कर्णाटक) चित्तौड़ा (राजस्थान) धर्मपाल (राजस्थान, मध्य प्रदेश) धाकड (विदर्भ-महाराष्ट्र) गंगेरवाल (पश्चिम विदर्भ-महाराष्ट्र) गोलसिंघारे (बुंदेलखंड-मध्य प्रदेश) गोलापूर्व (बुंदेलखंड-मध्य प्रदेश) गोलालारे (बुंदेलखंड-मध्य प्रदेश) गुरव (कोंकण-महाराष्ट्र) घांची (गुजरात,राजस्थान) हंबड/हुमड(गुजरात,राजस्थान, महाराष्ट्र) जैन ब्राह्मण(दक्षिण कर्णाटक) जैसवाल कच्छी ओसवाल (कच्छ-गुजरात) कंदोई कासार (महाराष्ट्र) कोष्टी/जैन कोष्टी(विदर्भ-महाराष्ट्र) कांबोज (कर्णाटक, महाराष्ट्र) कुरुबा/कुरुंब (कर्णाटक) खरौआ (भदावर-मध्य प्रदेश) खंडेलवाल (राजस्थान, मध्य प्रदेश) लमेचू (मध्य प्रदेश,उत्तर प्रदेश) मेवाडा (राजस्थान) मीणा (राजस्थान) नवनात (केनिया-आफ्रिका, इंग्लंड) नागदा (राजस्थान) नेमा (मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान) नैनार (तमिल नाडु) नाडावर...

जिसकी लाठी उसकी भैंस Might is Right : धार्मिक स्थलों की सुरक्षा

Image
प्राचीन काल से ही नहीं, बल्कि आज भी का सञ्चालन उक्त युक्ति के आधार पर ही हो रहा है । लेकिन दुर्भाग्य से हम जैनी लोग अभी भी अपने सपनों में ही डुबे हुए हैं !!! हमें आने वाले खतरे नजर नहीं आ रहे हैं ??? गत कुछ माह पूर्व ही वीले पार्ले, मुंबई के जिन-मंदिर को कुछ स्वार्थी तत्वों द्वारा सुनियोजित षड्यंत्र द्वारा अन्यायपूर्ण तरीके से तोड़े जाने एवं 02 जुलाई,2025 को गिरनारजी की सामूहिक यात्रा के समय, हमारा अपना तीर्थ क्षेत्र होने पर भी कितनी प्रतिबंधता एवं कठिनाइयों के बीच हम यात्रा कर सके ???, यह सब इस बात का प्रमाण है कि जब तक हम संगठित होकर अपने अधिकारों के प्रति जागृत नहीं होंगे, तब तक निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा नियोजित षड्यंत्रों द्वारा हमारी कमजोरी का फायदा उठाया जाता रहेगा। तो हमें यह समझना होगा कि प्रश्न चाहे गिरनारजी का हो, या शिखरजी का या पालीताना का ? ? ? अंतरिक्ष पार्श्वनाथ का या कुण्डल का ??? श्वेताम्बर का या दिगंबर का ??? तेरा पंथ का या बीस पंथ का ??? हमें सभी भेद भाव भुलाकर संगठित होकर संकीर्णता छोड़कर अपने धार्मिक स्थलों की सुरक्षा के लिए सजग होना पड़ेगा। धार्मिक स्थल रहेंगे ...

लेख: कर्नाटक एवं महाराष्ट्र के जैन OBC एवं जातिगत जन गणना

Image
.. 1 ... युवावस्था से ही लगभग 35 वर्षों से सामाजिक कार्यों में रूचि होने के कारण पुणे (महाराष्ट्र) की स्थानीय संस्थाओं के साथ ही राष्ट्रिय संस्थाओं जैसे दिगंबर जैन महासमिति, दिगंबर जैन महासभा, जैन इंजीनियर्स' सोसाइटी आदि में भी सक्रीय रूप से कार्य करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । इस समय ऐसा आभास हुआ कि राष्ट्रिय संस्थाओं के सभी, विशेषकर उत्तर भारत के लगभग सभी वरिष्ठ कार्यकर्ताओं एवं पदाधिकारियों में अनभिज्ञनता के कारण यह धारणा बनी हुई है कि जैन धर्मानुयायी सिर्फ ओसवाल, पोरवाल, खंडेलवाल, अग्रवाल, हुमड़, पोरवाड़, परवार आदि उपजातियों तक ही सिमित हैं । जब कि तथ्य यह है कि जैन धर्म जन्म से नहीं बल्कि कर्म से जुड़ा हुआ है। अतः जो जैन धर्म के सिद्धांतो को मानता है एवं उसके अनुसार आचरण करता है, वही सच्चा जैनी है । इस सिद्धांत के अनुसार दक्षिण भारत विशेषकर महाराष्ट्र एवं कर्नाटक राज्य के कुछ जिलों के सम्पूर्ण गावों के निवासी जैन धर्मानुयायी हैं । लेकिन वे उपरोक्त किसी भी उपजाति से सम्बन्ध नहीं रखते हैं, बल्कि चतुर्थ या पंचम कहलाते हैं । ये सभी अधिकतर कृषि करते हैं या गांव की जरुरत के अनुसार वि...

अखिर क्यों प्याज लहसुन पर ताना मार मारकर जैनियों का हाल बेहाल कर रखा है!

Image
जैनियों पर दिन प्रतिदिन आलू प्याज के उपयोग के ऊपर निरंतर अलग-अलग तरीके से ताने मारे जाते हैं| इन तानों में जैनियों को अपमानित किया जाता है कि वह प्याज लहसुन जैसे शाकाहारी सब्जी का उपयोग क्यों नहीं करते हैं|  प्याज लहसुन पर ताना मार मारकर जैनियों का हाल बेहाल कर रखा है! जैन संस्कृति में कंदमूल का निषेध है| जो शाक सब्जी जमीन के नीचे उगती हैं उनका प्रयोग वर्जित होता है|  उसके पीछे और भी अनेक कारण होते हैं| प्याज लहसुन एवं अनेकों कंदमूल में अनंत संख्या में निगोदिया जीव होते हैं| इन निगोदिया जीवों की उत्पत्ति के कारण ही प्याज लहसुन बैंगन गाजर मूली आलू इनका सेवन जैन धर्म संस्कृति के अनुसार अनुचित है| वर्तमान समय में अभी भी बड़ी संख्या में जैन अनुयाई इनका उपयोग दैनिक जीवन में नहीं करते हैं परंतु अन्य भारतीय समाज में इस जानकारी का बड़ा अभाव है| जिसके कारण एक ऐसी स्थिति बन गई है देश में जहां बहुत कम संख्या में भारतीय कंदमूल या प्याज लहसुन का सेवन नहीं करते हैं| इस श्रेणी में अधिकांश जैन ही आते हैं फलस्वरूप जैनियों के ऊपर बार-बार यह ताना मारा जाता है कि वह वह इन शाक सब्जी का उपयोग क्यों...

शाकाहारी होकर मांसाहारी रेस्तरां होटलों में भोजन क्यों करते हो?🤔

Image
भारतवर्ष में जितने भी मेरे शाकाहारी भाई बहन हैं वह कैसे शाकाहारी होते हुए मांसाहारी प्रतिष्ठानों में भोजन कर सकते हैं? इस विषय को आज यहां पर आप सबसे चर्चा करना चाहूंगा| जो दिखने में तो बहुत सामान्य है लेकिन सामान्य रुप में अधिकांश शाकाहारियों के चरित्र से लगभग गायब है और ऐसी विचारधारा अंजाने में उन्हें मांसाहारी व्यक्ति में परिवर्तित कर रही है|  यहां मैं सबको दोषी नहीं ठहरा रहा हूं| लेकिन मैं उन शाकाहारियों से प्रश्न पूछ रहा हूं कि अगर आप सही रूप में शाकाहारी हैं, मतलब की आप vegetarian हैं जिसमे आप मीट और अंडा भी नहीं खाते हैं| मैं ऐसे शाकाहारियों की बात कर रहा हूं|  आप कैसे उन प्रतिष्ठानों में प्रवेश कर सकते हैं जहां के एक ही किचन में मीट और शाकाहार भोजन एकसाथ पकने के पश्चात टेबल पर परोसा जाता है? ऐसी जगहों से आप ऑनलाइन भोजन भी ऑर्डर करते हैं| कहना यह है: “शाकाहारी होते हुए केवल शाकाहार रेस्तरां से ही ऑर्डर या वहां जाकर भोजन क्यों नहीं करते हैं? मान लीजिए एक ठीक-ठाक अच्छा रेस्टोरेंट है| वहां पर वो intercontinental भोजन परोसते हैं| मतलब सब तरीके के भोजन एक ही जगह उपलब्ध होते ह...

विहार से बिहार! बिहार राज्य का सही नामकरण इतिहास Vihaar to Bihar! Correct Naming History of Bihar|

Image
समस्त भारतवासियों से नमस्ते|  विहार से  बिहार! आप सब लोगों ने कभी ध्यान दिया कि बिहार का पूर्व इतिहास में शब्द रहा है  विहार| आप इंटरनेट पर शोध करेंगे तो आपको यही शब्द  दिखेगा...विहार| विहार का मतलब क्या है?  कौन सी संस्कृति से इसका रिश्ता  है?  जैन संस्कृति या यूं कहें श्रमण संस्कृति में विहार शब्द का नियमित उपयोग  होता है| वर्तमान परिस्थिति में जब जैन मुनि एवं आर्यिका  साधु साधवी एक स्थान से दूसरे स्थान पैदल जाते  हैं तो हम विहार शब्द का उपयोग करते हैं| यह शब्द श्रमण संस्कृति में अधिक प्रचलन में है लेकिन  वर्तमान भारत में किसी अन्य संस्कृति में इस शब्द का इतना बहुतायत में उपयोग नहीं  होता है| आप जैन समाज के अपने किसी भी बंधु से  इस विषय पर चर्चा करिए| वह आपको बताएंगे कि जब जैन मुनि  उनके नगर में आते हैं, उनका चातुर्मास होता है, या वह वहां से विहार कर रहे होते  हैं तो हर समय यही शब्द उपयोग में  आएगा| विहार का बिहार से जो जुड़ाव है वह प्रारंभ होता है भगवान महावीर   से| भगवान महावीर का जन्म पूर्व इतिहास ...

स्वतंत्रता संग्राम में जैन: सेनानी अण्णा पत्रावले

Image
  "अध्यापको! नौकरियाँ छोड़ दो और देश को स्वतन्त्र कराने के लिए क्रान्ति कार्य में शामिल हो जाओ। 'अंग्रेजो यहाँ से भागो।' ऐसी घोषणा कर अंग्रेजों को जला दो।" अपनी तिमाही परीक्षा की कापी में यह लिखकर 1942 के आन्दोलन में कूद पड़ने वाले 17 वर्षीय नौजवान अमर शहीद अण्णा पत्रावले या अण्णासाहेब पत्रावले को आज हम भले ही भूल गये हों, पर भारतीय स्वातन्त्र्य समर के इतिहास में उनका नाम सदा अमर रहेगा। 1942 का 'भारत छोड़ो आन्दोलन' एक ऐसा निर्णायक आन्दोलन था, जिसमें हजारों नहीं लाखों की संख्या में नौजवान विद्यार्थी अपनी पढ़ाई छोड़कर कूद पड़े थे। 'करो या मरो' उनका मूल मंत्र था। इसी आन्दोलन में भारत माँ पर अपना सर्वस्व समर्पण करने वाले अण्णा साहब भी शहीद हो गये थे। अण्णा पत्रावले का जन्म 22 नवम्बर 1925 को हातकणंगले, जिला-सांगली (महाराष्ट्र) में अपने नाना के घर एक जैन परिवार में हुआ। माँ इन्दिरा उस दिन सचमुच इन्दिरा - लोकमाता बन गईं जब अण्णा साहब ने उनकी कोख से जन्म लिया। पिता एगमंद्राप्पा व्यंकाप्पा उस दिन बहुत प्रसन्न थे। नाना के घर बधाईयाँ बज रहीं थीं। अण्णा साहब बचपन ...

स्वतंत्रता संग्राम में जैन: सेनानी कुमारी जयावती संघवी एवं नाथालाल शाह उर्फ नत्थालाल शाह

Image
प्रथम कहानी अहमदाबाद (गुजरात) की कुमारी जयावती संघवी भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन की वह दीपशिखा थीं जो अपना पूरा प्रकाश अभी दे भी नहीं पायीं थीं कि जीवन का अवसान हो गया । जयावती का जन्म 1924 में अहमदाबाद में हुआ था। 5 अप्रैल 1943 को अहमदाबाद नगर में ब्रिटिश शासन के विरोध में एक विशाल जुलूस निकाला जा रहा था । प्रमुख रूप से यह जुलूस कॉलेजों के छात्र-छात्राओं का ही था। इसमें प्रमुख भूमिका जयावती संघवी निभा रही थीं। जुलूस आगे बढ़ता जा रहा था, पर यह क्या ? अचानक पुलिस ने जुलूस को तितर-बितर करने के लिए आँसू गैस के गोले छोड़ना प्रारम्भ कर दिया। स्वाभाविक था कि गोले आगे को छोड़े गये, अतः नेतृत्व करती जयावती पर इस गैस का इतना अधिक प्रभाव पड़ा कि उनकी मृत्यु हो गयी। आ) (1) क्रान्ति कथाएँ, पृ० 808 (2) शोधादर्श, फरवरी 1987

स्वतंत्रता संग्राम में जैन: सेनानी साबुलाल जैन बैसाखिया जैन

Image
अत्यल्प वय में ही स्वतंत्रता की बलिवेदी पर अपनी कुर्बानी देकर भारत माँ को परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त कराने का रास्ता प्रशस्त कर गये शहीदों में गढ़ाकोटा, जिला - सागर ( म०प्र०) के अमर शहीद श्री साबूलाल बैसाखिया का नाम अग्रगण्य है। साबूलाल का जन्म 1923 ई० में गढ़ाकोटा में हुआ। पिता पूरन चंद, वास्तव में उसी दिन पूरन (पूर्ण) हुए थे, जब साबूलाल ने उनके घर जन्म लिया। बालक साबूलाल ने स्थानीय स्कूल में ही पांचवीं तक शिक्षा ग्रहण की। उन दिनों दर्जा पांच पास कर लेना भी बहुत समझा जाता था। साबूलाल की इच्छा और अधिक पढ़ने की थी, पर पिता की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, अतः असमय में ही उन्हें पढ़ाई छोड़कर गृहकार्य में लग जाना पड़ा। पर इससे देश-प्रेम की जो भावना उनमें जाग चुकी थी, वह मन्द नहीं पड़ी प्रत्युत दिन-ब-दिन बढ़ती ही गई। 1942 का 'भारत छोड़ो आन्दोलन' निर्णायक था। भारत माँ आजादी के लिए तड़फड़ा रही थी, रणबांकुरे एक-एक कर इस यज्ञ में अपना होम देने के लिए तैयार थे। सारे देश में हड़तालों, जुलूसों, सभाओं आदि का आयोजन हो रहा था । स्त्री और पुरुष सभी इस आन्दोलन में सहभागी थे। बुन्देलखण्...

स्वतंत्रता संग्राम में जैन: सेनानी वीर उदयचंद जैन

Image
भारत वर्ष की आजादी के लिए 1857 ई० से प्रारम्भ हुए 1947 तक के 90 वर्ष के संघर्ष में न जाने कितने वीरों ने अपनी कुर्बानियां दीं, कितने देशभक्तों ने जेल की दारुण यातनायें भोगीं। इस बीच अनेक आन्दोलन, सत्याग्रह, अहिंसक संघर्ष हुए, किन्तु 1942 का 'करो या मरो' आन्दोलन निर्णायक सिद्ध हुआ । इसी आन्दोलन के अमर शहीद हैं वीर उदय चंद जैन । प्राचीन महाकौशल और आज के मध्य प्रदेश का प्राचीन और प्रसिद्ध नगर है मण्डला । नर्मदा मैया कल-कल निनाद करती हुई यहाँ से गुजरती हैं। यह वही मण्डला है, जहाँ शंकराचार्य ने मण्डन मिश्र को शास्त्रार्थ में पराजित किया था, पर आज लोग मण्डला को अमर शहीद वीर उदयचंद की शहादत के कारण जानते हैं। मण्डला नगर के पास ही नर्मदा मैया के दूसरे तट पर बसा है महाराजपुर ग्राम । इसी ग्राम के निवासी थे वीर उदयचंद जैन, जिन्होंने मात्र 19 वर्ष की अल्पवय में सीने पर गोली खाकर देश की आजादी का मार्ग प्रशस्त किया था। उदयचंद जैन का जन्म 10 नवम्बर 1922 को हुआ। आपके पिता का नाम सेठ त्रिलोकचंद एवं माता का नाम श्रीमती खिलौना बाई था। उदय चंद की प्रारम्भिक शिक्षा महाराजपुर में हुई। 1936-37 में ...