एक दृष्टि: भारत के नामकरण इतिहास की सही सच्चाई

 भारत का नाम भारत तीर्थंकर ऋषभदेव / आदिनाथ भगवान के जेष्ठ पुत्र सम्राट भरत चक्रवर्ती के नाम पर रखा गया है| जिस काल खंड समय में यह समयघटित हुआ था वह महाभारत रामायण वैदिक काल से भी अधिक प्राचीन है| भरत चक्रवर्ती इस काल खंड के प्रथम चक्रवरतीं थे| वर्तमान समय में अनेक स्त्रोतों से प्रमाण एवं साक्ष्य प्राप्त हो सकते हैं: 1) श्रमण (जैन) शस्त्रों में सम्पूर्ण उल्लेख और विवरण पहले से ही उपलब्ध है 2) अनेकों प्रचलित वैदिक वैष्णव हिन्दू शस्त्रों एवं पुराणों में भी यह जानकारी उपलब्ध है परंतु अधिकांश हिंदुओं एवं वैदिक अनुयायियों को यह सही जानकारी उपलब्ध नहीं कराई गई और साथ ही किन्ही कारणों से उनसे जानबूझकर यह ज्ञान छुपाया गया, 3) ओडिशा राज्य के भुवनेश्वर नगर के समीप, स्थित हाथीगुम्फा में पुरातात्विक साक्ष्य उपलब्ध है जहां पर एक अति प्राचीन शिलालेख स्थापित है जिसे सम्राट खारवेल ने लिखवाया था| वहाँ पर भारत नाम स्पष्ट रूप से अंकित है प्राकृत भाषा में| संविधान निर्माताओं ने वही से प्रेरित होकर देश का नाम भारत रखा था| भारत के सही नामकरण इतिहास के तथ्यों को अधिकांश भारतीय शिक्षक एवं इतिहासकार सही साक्ष्यों के साथ प्रस्तुत नहीं करते हैं| उनके शोध कार्य सही ज्ञान से परिपूर्ण एवं सत्य नहीं है| इतिहासकारों एवं शोधकर्ताओं को निष्पक्षता के साथ भारत के नामकरण इतिहास विषय की गहराइयों में जाकर सही सत्य को जानकर समस्त देश के समक्ष उजागर करना चाहिए|

भवदीय|

आकाश जैन

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Comments

  1. https://www.facebook.com/share/p/1AmBGL1kFJ/
    *THE NAME OF OUR COUNTRY FROM MOST ANCIENT HISTORY IS BHARAT NOT HINDUSTAN.*

    हिंदू कोई धर्म नहीं है,ना ही किसी प्राचीन भारतीय पुस्तक में हिंदू नाम के किसी धर्म का उल्लेख आया है। बल्कि यह एक संस्कृति है जो एक सिंधुघाटी श्रेत्र में विकसित हुई है।

    चार प्रमुख धर्म जो हिंद क्षेत्र में उत्पन्न हुए वे सभी धर्म, अरबों द्वारा हिंदू धर्म कहकर बुलाये गए थे क्योंकि वे सिंधु(indus valley)को हिंद कहकर बुलाते थे।

    १- जैन धर्म
    २- वैदिक (वेदों से)
    ३- बोद्ध धर्म
    ४- शिक्ख धर्म(1699 सन् में)

    भगवान आदिनाथ(ऋषभदेव) जैन धर्म के पहले तीर्थंकर (संस्थापक) हैं,,(इनसे पहले अनंत कालचक्र में अनंता जैन तीर्थंकर भी हुए हैं)

    भारतीय वैदिक 'ऋषि' शब्द भी उनके नाम 'ऋषभ' से आया है और इन ऋषभदेव की स्तवना वेदों में भी की गई है।
    बौद्धधर्म में आदिबुद्ध के रूप में भगवान आदिनाथ की ही पूजा की जाती है।

    हमारे देश का नाम ""भारत """ प्रथम जैन तीर्थंकर ऋषभदेव जिन्हें हम आदिनाथ भी कहते हैं,
    इनके प्रथम सुपुत्र ""भरत """ जो चक्रवर्ती सम्राट थे, इनके नाम पर इस देश का नामकरण हुआ है।
    भागवत पुराण के 5 वे अध्याय में,
    अग्नि पुराण के 10 वे अध्याय में,
    वायु पुराण के 33 वे अध्याय में ,
    कूर्मपुराण के 41 वे अध्याय में,
    लिंग पुराण के 47 वे अध्याय में ,
    नारद पुराण के 48 वे अध्याय में,
    मार्कण्डेय पुराण के 50 वे अध्याय में,
    विष्णु पुराण में,सार्थ एकनाथजी भागवत में, सूरसागर के दोहों में और अति प्राचीन ग्रंथ जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति और वसुदेव हिंडि में,
    इन सभी भारतीय प्राचीन ग्रंथों में इस बात के एकदम स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं कि हमारे भारत देश का नामकरण तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र भरत चक्रवर्ती के नाम पर ही हुआ हैं।

    भगवान आदिनाथ को 4000 साल पहले अरब में उत्पन्न हुए यहुदी धर्म(jews)में पहले पैगंबर आदिमबाबा/Adam के रूप में माना जाता है।

    लेकिन यहूदी धर्म में भगवान आदिनाथ के दोनो बेटे काबिल(भरत चक्रवर्ती) और हाबिल(बाहुबलि) की कहानी को एक काल्पनिक निर्माता के अस्तित्व को साबित करने के लिए दूसरे तरीके से बदल दी गई है।
    लेकिन हम जैनग्रंथों में वास्तविक कहानी पढ़ सकते हैं।

    यहुदी धर्म के सभी उपदेश (commandments) जैन धर्म के मूलभूत सिद्धांंतो से ही निकले हैं।

    यहुदी धर्म के founder इब्राहिम को पहाड़ों में साधना कर रहे एक जैन साधु ने ही आध्यात्मिक ज्ञान का उपदेश दिया था,

    ईसाई और मुस्लिम धर्म ने भी यहुदी धर्म की तरह तीर्थंकर आदिनाथ को ही पहला पैगंबर(prophet) आदिमबाबा/Adam माना है।

    विश्व के सभी धर्मों का मूल उद्भव स्त्रोत्र एक ही "तीर्थंकर आदिनाथ" ही है।
    https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=829188550426768&id=100000068935876
    *KING (SAMRAT ) BHARAT IN WHOSE NAME OUR COUNTRY GETS IDENTIFIED , WAS SON OF LORD RISHABH DEB ( INCARNATION OF LORD VISHNU AS PER BRAHMIN MYTHOLOGY / IST TIRTHANKAR WHO LAID DOWN BASIC OF NON VIOLENCE PHILOSOPHY WITH TRUTH ..*

    *THE HINDU WORD CAME FROM SINDHU RIVER.*

    *THOSE WHO LIVE ACROSS / OTHER SIDE OF SINDHU ARE CALLED HINDUS.*

    *THERE IS NO WORD LIKE HINDU IN ANY ANCIENT GRANTHA / SCRIPTURE LIKE VED , SHRIMAD BHAGWAT AND AAGAM .

    HENCE WE ARE BHARATIYA .

    WHEN THE WORD " HINDU " ITSELF NON EXISTENT IN TERMS OF SCRIPTURE /SHASTRA OR HISTORY THEN WE SHOULD GLORIFY OUR CULTURE AS BHRATIYA CULTURE*

    https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=829188550426768&id=100000068935876

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    1. This comment has been removed by the author.

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    2. Thoughtful insights for the reading community.

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  2. *जय जिनेंद्र.*
    (दिनांक 02/04/2017 को लिखा था )
    https://www.facebook.com/share/p/hnM3VQk98XAPyrBM/
    *Whatsap / Facebook मे ज्ञान गंगा की निरंतरता देख कर ऐसा लगता है की हम लोग तीसरे या चौथे आरे में यानि सत्य युग या त्रेता युग मे जीवन व्यतीत कर रहे हैं __ पर क्या ऐसा है ??*

    *यहाँ वहाँ से थोड़ा शब्द बदलकर या हल्का-फुल्का परिवर्तन कर .....कॉपी पेस्ट वह भी मौलिक लेखक / मौलिक सूत्र का नाम हटा कर यानि """अदत्तादान का दोष"" तो अवश्य है.*

    https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1506498796029070&id=100000068935876

    *पर उपदेश कुशल बहुतेरे ।*
    *जे आचरहिं ते नर न घनेरे ।।*
    *— गोस्वामी तुलसीदास*
    *दूसरों को उपदेश देना हमारे ( मेरे लिए भी) लिए तो बहुत आसान है लेकिन ""स्वयं हम"" उन उपदेशों पर कितना अमल कर पातें हैं ??*

    *किसी के लिखे हुए लेख से """उस लेख के लेखक का नाम या सूत्र हटा कर कॉपी पेस्ट करना चोरी है""" , चोरी सिर्फ द्रव्य या धन की नहीं होती , किसी के घंटो दिनों महीनों वर्षों की मेहनत की फसल रूपी लेखों से मौलिक लेखक का नाम हटाना अपराध है*

    *अपना ज्ञान प्रदर्शन करने के लिए लेखों से मौलिक लेखक का नाम / सूत्र बदलना या हटाना भयंकर पाप हैं ।*

    *आइये, पुरे दिन मे २४ घंटे होते है और हर घंटे मे ६० मिनट हम सब नित्य २४ मिनिट गहन गंभीर अध्ययन का संकल्प लें.*

    https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1506498796029070&id=100000068935876
    🌹 👏🏼👏🏼👏🏼👏🏼🌹
    https://www.facebook.com/share/p/19aYi7ZWrc/

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    1. * पूर्ण सहमति जो ध्येय है आपका|
      * यह सत्य है सोशल मीडिया के जगत में कॉपी पेस्ट जानकारियों की भीड़ उपस्थित है ज्ञान नहीं|
      * सही सत्य मूल स्त्रोत्र का पठन पाठन करने वालों की संख्या अत्यंत अल्प मात्रा में है| जिन्होंने copy paste करके अपनी पुस्तकें प्रकाशित करी हैं बस उन्हें ही वर्तमान नागरिक किसी ना किसी बहाने पढ़ सुन देख लेता है या कहें तो टाइम paas कर लेता है| शेष व्यक्ति हाथ में सही पुस्तक शायद ही कभी लेते हैं|
      * अधिकांश समय सोशल मीडिया forward culture में मात्र सरसरी निगाहों से content को पढ़ देख लेते हैं (shorts & reels) और कुछ समय के पश्चात उसे सरलता से भूल जाते हैं|

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