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शाकाहारी होकर मांसाहारी रेस्तरां होटलों में भोजन क्यों करते हो?🤔

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भारतवर्ष में जितने भी मेरे शाकाहारी भाई बहन हैं वह कैसे शाकाहारी होते हुए मांसाहारी प्रतिष्ठानों में भोजन कर सकते हैं? इस विषय को आज यहां पर आप सबसे चर्चा करना चाहूंगा| जो दिखने में तो बहुत सामान्य है लेकिन सामान्य रुप में अधिकांश शाकाहारियों के चरित्र से लगभग गायब है और ऐसी विचारधारा अंजाने में उन्हें मांसाहारी व्यक्ति में परिवर्तित कर रही है|  यहां मैं सबको दोषी नहीं ठहरा रहा हूं| लेकिन मैं उन शाकाहारियों से प्रश्न पूछ रहा हूं कि अगर आप सही रूप में शाकाहारी हैं, मतलब की आप vegetarian हैं जिसमे आप मीट और अंडा भी नहीं खाते हैं| मैं ऐसे शाकाहारियों की बात कर रहा हूं|  आप कैसे उन प्रतिष्ठानों में प्रवेश कर सकते हैं जहां के एक ही किचन में मीट और शाकाहार भोजन एकसाथ पकने के पश्चात टेबल पर परोसा जाता है? ऐसी जगहों से आप ऑनलाइन भोजन भी ऑर्डर करते हैं| कहना यह है: “शाकाहारी होते हुए केवल शाकाहार रेस्तरां से ही ऑर्डर या वहां जाकर भोजन क्यों नहीं करते हैं? मान लीजिए एक ठीक-ठाक अच्छा रेस्टोरेंट है| वहां पर वो intercontinental भोजन परोसते हैं| मतलब सब तरीके के भोजन एक ही जगह उपलब्ध होते ह...

विहार से बिहार! बिहार राज्य का सही नामकरण इतिहास Vihaar to Bihar! Correct Naming History of Bihar|

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समस्त भारतवासियों से नमस्ते|  विहार से  बिहार! आप सब लोगों ने कभी ध्यान दिया कि बिहार का पूर्व इतिहास में शब्द रहा है  विहार| आप इंटरनेट पर शोध करेंगे तो आपको यही शब्द  दिखेगा...विहार| विहार का मतलब क्या है?  कौन सी संस्कृति से इसका रिश्ता  है?  जैन संस्कृति या यूं कहें श्रमण संस्कृति में विहार शब्द का नियमित उपयोग  होता है| वर्तमान परिस्थिति में जब जैन मुनि एवं आर्यिका  साधु साधवी एक स्थान से दूसरे स्थान पैदल जाते  हैं तो हम विहार शब्द का उपयोग करते हैं| यह शब्द श्रमण संस्कृति में अधिक प्रचलन में है लेकिन  वर्तमान भारत में किसी अन्य संस्कृति में इस शब्द का इतना बहुतायत में उपयोग नहीं  होता है| आप जैन समाज के अपने किसी भी बंधु से  इस विषय पर चर्चा करिए| वह आपको बताएंगे कि जब जैन मुनि  उनके नगर में आते हैं, उनका चातुर्मास होता है, या वह वहां से विहार कर रहे होते  हैं तो हर समय यही शब्द उपयोग में  आएगा| विहार का बिहार से जो जुड़ाव है वह प्रारंभ होता है भगवान महावीर   से| भगवान महावीर का जन्म पूर्व इतिहास ...

स्वतंत्रता संग्राम में जैन: सेनानी अण्णा पत्रावले

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  "अध्यापको! नौकरियाँ छोड़ दो और देश को स्वतन्त्र कराने के लिए क्रान्ति कार्य में शामिल हो जाओ। 'अंग्रेजो यहाँ से भागो।' ऐसी घोषणा कर अंग्रेजों को जला दो।" अपनी तिमाही परीक्षा की कापी में यह लिखकर 1942 के आन्दोलन में कूद पड़ने वाले 17 वर्षीय नौजवान अमर शहीद अण्णा पत्रावले या अण्णासाहेब पत्रावले को आज हम भले ही भूल गये हों, पर भारतीय स्वातन्त्र्य समर के इतिहास में उनका नाम सदा अमर रहेगा। 1942 का 'भारत छोड़ो आन्दोलन' एक ऐसा निर्णायक आन्दोलन था, जिसमें हजारों नहीं लाखों की संख्या में नौजवान विद्यार्थी अपनी पढ़ाई छोड़कर कूद पड़े थे। 'करो या मरो' उनका मूल मंत्र था। इसी आन्दोलन में भारत माँ पर अपना सर्वस्व समर्पण करने वाले अण्णा साहब भी शहीद हो गये थे। अण्णा पत्रावले का जन्म 22 नवम्बर 1925 को हातकणंगले, जिला-सांगली (महाराष्ट्र) में अपने नाना के घर एक जैन परिवार में हुआ। माँ इन्दिरा उस दिन सचमुच इन्दिरा - लोकमाता बन गईं जब अण्णा साहब ने उनकी कोख से जन्म लिया। पिता एगमंद्राप्पा व्यंकाप्पा उस दिन बहुत प्रसन्न थे। नाना के घर बधाईयाँ बज रहीं थीं। अण्णा साहब बचपन ...

स्वतंत्रता संग्राम में जैन: सेनानी कुमारी जयावती संघवी एवं नाथालाल शाह उर्फ नत्थालाल शाह

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प्रथम कहानी अहमदाबाद (गुजरात) की कुमारी जयावती संघवी भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन की वह दीपशिखा थीं जो अपना पूरा प्रकाश अभी दे भी नहीं पायीं थीं कि जीवन का अवसान हो गया । जयावती का जन्म 1924 में अहमदाबाद में हुआ था। 5 अप्रैल 1943 को अहमदाबाद नगर में ब्रिटिश शासन के विरोध में एक विशाल जुलूस निकाला जा रहा था । प्रमुख रूप से यह जुलूस कॉलेजों के छात्र-छात्राओं का ही था। इसमें प्रमुख भूमिका जयावती संघवी निभा रही थीं। जुलूस आगे बढ़ता जा रहा था, पर यह क्या ? अचानक पुलिस ने जुलूस को तितर-बितर करने के लिए आँसू गैस के गोले छोड़ना प्रारम्भ कर दिया। स्वाभाविक था कि गोले आगे को छोड़े गये, अतः नेतृत्व करती जयावती पर इस गैस का इतना अधिक प्रभाव पड़ा कि उनकी मृत्यु हो गयी। आ) (1) क्रान्ति कथाएँ, पृ० 808 (2) शोधादर्श, फरवरी 1987

स्वतंत्रता संग्राम में जैन: सेनानी साबुलाल जैन बैसाखिया जैन

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अत्यल्प वय में ही स्वतंत्रता की बलिवेदी पर अपनी कुर्बानी देकर भारत माँ को परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त कराने का रास्ता प्रशस्त कर गये शहीदों में गढ़ाकोटा, जिला - सागर ( म०प्र०) के अमर शहीद श्री साबूलाल बैसाखिया का नाम अग्रगण्य है। साबूलाल का जन्म 1923 ई० में गढ़ाकोटा में हुआ। पिता पूरन चंद, वास्तव में उसी दिन पूरन (पूर्ण) हुए थे, जब साबूलाल ने उनके घर जन्म लिया। बालक साबूलाल ने स्थानीय स्कूल में ही पांचवीं तक शिक्षा ग्रहण की। उन दिनों दर्जा पांच पास कर लेना भी बहुत समझा जाता था। साबूलाल की इच्छा और अधिक पढ़ने की थी, पर पिता की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, अतः असमय में ही उन्हें पढ़ाई छोड़कर गृहकार्य में लग जाना पड़ा। पर इससे देश-प्रेम की जो भावना उनमें जाग चुकी थी, वह मन्द नहीं पड़ी प्रत्युत दिन-ब-दिन बढ़ती ही गई। 1942 का 'भारत छोड़ो आन्दोलन' निर्णायक था। भारत माँ आजादी के लिए तड़फड़ा रही थी, रणबांकुरे एक-एक कर इस यज्ञ में अपना होम देने के लिए तैयार थे। सारे देश में हड़तालों, जुलूसों, सभाओं आदि का आयोजन हो रहा था । स्त्री और पुरुष सभी इस आन्दोलन में सहभागी थे। बुन्देलखण्...

स्वतंत्रता संग्राम में जैन: सेनानी वीर उदयचंद जैन

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भारत वर्ष की आजादी के लिए 1857 ई० से प्रारम्भ हुए 1947 तक के 90 वर्ष के संघर्ष में न जाने कितने वीरों ने अपनी कुर्बानियां दीं, कितने देशभक्तों ने जेल की दारुण यातनायें भोगीं। इस बीच अनेक आन्दोलन, सत्याग्रह, अहिंसक संघर्ष हुए, किन्तु 1942 का 'करो या मरो' आन्दोलन निर्णायक सिद्ध हुआ । इसी आन्दोलन के अमर शहीद हैं वीर उदय चंद जैन । प्राचीन महाकौशल और आज के मध्य प्रदेश का प्राचीन और प्रसिद्ध नगर है मण्डला । नर्मदा मैया कल-कल निनाद करती हुई यहाँ से गुजरती हैं। यह वही मण्डला है, जहाँ शंकराचार्य ने मण्डन मिश्र को शास्त्रार्थ में पराजित किया था, पर आज लोग मण्डला को अमर शहीद वीर उदयचंद की शहादत के कारण जानते हैं। मण्डला नगर के पास ही नर्मदा मैया के दूसरे तट पर बसा है महाराजपुर ग्राम । इसी ग्राम के निवासी थे वीर उदयचंद जैन, जिन्होंने मात्र 19 वर्ष की अल्पवय में सीने पर गोली खाकर देश की आजादी का मार्ग प्रशस्त किया था। उदयचंद जैन का जन्म 10 नवम्बर 1922 को हुआ। आपके पिता का नाम सेठ त्रिलोकचंद एवं माता का नाम श्रीमती खिलौना बाई था। उदय चंद की प्रारम्भिक शिक्षा महाराजपुर में हुई। 1936-37 में ...

Top 10 Companies with highest Mutual Fund (MFs) stakes ending December 2024

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In the December 2024 quarter, several companies saw high mutual fund (MF) ownership, indicating strong institutional interest.  Brokerage firm Kotak Institutional Equities has compiled a list of top 10 companies where MFs held the highest stakes as of quarter ended December 2024. Federal Bank Sapphire Foods Crompton Greaves Consumer Kalpataru Projects Equitas Small Finance Bank Cipla PVR INOX Gateway Distriparks Max Financial InterGlobe Aviation Indian consumers should always conduct due research into mutual funds portfolios and not blindly follow the advisory of MF Companies or various Fund Managers from Wealth Management Firms situated acros the length & breadth of the country. Mutual Fund companies invest in potentially (extra) growing listed entities with the BSE & NSE Exchanges, on behalf of their customers. As average citizens (consumers) do not have the expertise & knowledge to pick correct listed companies with the BSE/NSE and individually invest through equity ...

स्वतंत्रता संग्राम में जैन: सेनानी साताप्पा टोपण्णावर

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                                                                                     विजयी विश्व तिरंगा प्यारा। झण्डा ऊँचा रहे हमारा || श्री श्यामलाल पार्षद द्वारा रचित यह गीत हमारे स्वतंत्रता आन्दोलन का प्रेरणा गीत बना था । इस गीत को गाते हुए न जाने कितने नौजवान आजादी के आन्दोलन में कूद पड़े थे। अपने झण्डे को ऊँचा रखने के लिए ही तो हमारे शहीदों ने अपनी कुर्बानियाँ दीं थीं। तिरंगा आज भी हमारे स्वाभिमान का प्रतीक है। यही तिरंगा राष्ट्र ध्वज हमारी कीर्ति को दिग् दिगन्त व्यापिनी बनाता हुआ आज भी शान से लहरा रहा है।  इसकी शान न जाने पाये।   चाहे जान भले ही जाये ।। यह मूल-मंत्र आज भी हमें राष्ट्र-ध्वज पर मर मिटने की प्रेरणा देता है। इसी राष्ट्र ध्वज के सम्मान की रक्षा के लिए अमर शहीद वीर साताप्पा टोपण्णावर ने अपनी जान की परवाह न करत...

स्वतंत्रता संग्राम में जैन: सेनानी सिंघई प्रेमचंद जैन

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दमोह ( म०प्र०) जिले के एक छोटे से ग्राम सेमरा बुजुर्ग में उस दिन प्रेम की बरसात होने लगी, सारे गांव में सुख छा गया, जिस दिन भारतमाता से प्रेम करने वाले अमर शहीद प्रेमचंद का जन्म सिंघई सुखलाल एवं माता सिरदार बहू के आंगन में हुआ । सिंघई प्रेमचंद जैन बचपन से ही उत्साही, लगनशील, निर्भीक, प्रतिभाशाली एवं होनहार युवक थे। सुखलाल जी की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। फिर भी बालक प्रेमचंद को उन्होंने प्राथमिक शिक्षा के बाद माध्यमिक कक्षाओं में पढ़ने के लिए दमोह के महाराणा प्रताप हाईस्कूल में भेज दिया। दिसम्बर 1933 में पूज्य महात्मा गांधी का दमोह नगर में आगमन हुआ । प्रेमचंद 16 कि0मी0 चलकर उनका भाषण सुनने दमोह आये, कहते हैं इसके बाद वे लौटकर गांव नहीं गये और दमोह में ही आजादी के महायज्ञ में कूद पड़े। जंगल सत्याग्रह, विदेशी कपड़ों का बहिष्कार, मादक वस्तुओं के विक्रय केन्द्रों पर धरना, नमक सत्याग्रह, झण्डा फहराना आदि साहसिक कार्यों में भाग लेने के परिणामस्वरूप सिंघई जी को स्कूल से निकाल दिया गया। तब आप खादी - प्रचार, अछूतोद्धार और गांव-गांव में डुग्गी बजाकर गांधी जी के सन्देशों का प्रचार करने लगे...

स्वतंत्रता संग्राम में जैन: सेनानी मोतीचंद शाह (जैन)

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 भारतीय स्वातन्त्र्य समर का मध्यकाल था वह, उन दिनों 'अंग्रेजो भारत छोड़ो' और 'इंकलाब जिन्दाबाद' जैसे नारे तो दूर 'वन्दे मातरम्' जैसा सात्विक और स्वदेश पूजा की भावना के प्रतीक शब्द का उच्चारण भी बड़े जीवट की बात समझी जाती थी। जो नेता सार्वजनिक मंचो से 'औपनिवेशिक स्वराज्य' की माँग रखते थे, उन्हें गर्म दल का समझा जाता था और उनसे किसी प्रकार का सम्पर्क रखना भी खतरनाक बात समझी जाती थी । ऐसे समय में प्रसिद्ध क्रान्तिकारी श्री अर्जुन लाल सेठी अपनी जयपुर राज्य की पन्द्रह सौ रुपये मासिक की नौकरी छोड़कर क्रान्ति - यज्ञ में कूद पड़े। उन्होंने जयपुर में वर्धमान विद्यालय की स्थापना की। कहने को तो यह धार्मिक शिक्षा का केन्द्र था किन्तु वहाँ क्रान्तिकारी ही पैदा किये जाते थे। 'जिस विद्यालय का संस्थापक स्वयं क्रान्तिकारी हो उस विद्यालय को क्रान्ति की ज्वाला भड़काने से कैसे रोका जा सकता है। ' सेठी जी एक बार 'दक्षिण महाराष्ट्र जैन सभा' के अधिवेशन में मुख्य वक्ता के रूप में महाराष्ट्र के सांगली शहर गये। वहाँ उनकी भेंट दो तरुणों से हुई। एक थे श्री देवचन्द्र,...